रोहतक। रोहतक में बढ़ती ठंड से पशुपालक भी परेशान हो रहे हैं क्योंकि ठंड से पशु बीमार हो रहे हैं और दुधारू पशु दूध कम दे रहे हैं। दरअसल दिसंबर के आखिरी सप्ताह में ठंड का कहर पूरे उत्तर भारत और पहाड़ी इलाकों में देखने को मिल रहा है।ठंड की वजह से ना सिर्फ लोगों को बल्कि जानवरों को भी कई समस्या होती है। खासकर ठंड के मौसम में बीमारी का खतरा भी बढ़ जाता है। रोहतक के पशु चिकित्सक का कहना है कि ठंड की वजह से छोटे कटड़े, कटड़ियों के हर रोज चार से पांच केस निमोनिया के अस्पतालों में आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि कई बड़े पशु भी ठंड से प्रभावित होकर अस्पताल में आ रहे हैं। ऐसे में जरूरी है कि पशुपालक ठंड के मौसम में अपने साथ-साथ पशुओं का भी खयाल रखें ताकि उन्हें ठंड के कहर से बचाया जा सके।
ठंड से दूध उत्पादन प्रभावित
ठंड के मौसम में पशुपालकों की भी परेशानी बढ़ गई है। दूध उत्पादन प्रभावित होने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता। ठंड की वजह से पशुओं में 15 से 20 प्रतिशत तक दूध की गिरावट देखी जा रही है। पशु चिकित्सक ने बताया पशु मौसम के उतार-चढ़ाव को बर्दाश्त नहीं कर पाते। ऐसे में ठंड की वजह से दुधारू पशुओं में दूध की मात्रा कम हो सकती है। दूध की मात्रा बनाए रखने के लिए प्रतिदिन 250 ग्राम गुड़ दें। पशु के खान-पान का ध्यान रखें। सूखा चारा और हरा चारा दो से एक के अनुपात में रखें। दो भाग सूखा और एक भाग हरा चारा दें। सूखा चारा शरीर में ऊर्जा बनाए रखता है। पशुओं को सेंधा नमक खिलाएं। इसे खिलाने से प्यास बढ़ेगी और शरीर में पानी की मात्रा भी पूरी रहेगी।
पशुओं के बच्चों में निमोनिया के लक्षण
वहीं, छोटे कटड़े व बछड़ों में पेशाब रूकने की समस्या बढ़ रही है। पशुओं में निमोनिया के केसों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी हो रही है, जिसके चलते पशुपालक खासे परेशान हैं। पशुपालकों की इसी समस्या को देखते हुए पशु चिकित्सक ने पशुपालकों को पशुओं को ठंड से बचाने के उपाय बताए हैं। पशु चिकित्स्क ने बताया कि ठंड की वजह से छोटे कटड़े, कटड़ियों के हर रोज चार से पांच केस निमोनिया के अस्पतालों में आ रहे हैं।
उन्होंने बताया कि कई बड़े पशु भी ठंड से प्रभावित होकर अस्पताल में आ रहे हैं, जिनका तापमान सामान्य से नीचे होता है। ऐसे पशुओं का दूध घटा हुआ होता है और चरना भी छोड़ देते हैं। पशुपालक बलविंद्र सांगवान ने बताया कि ठंड की वजह से उनकी गाय व भैंसों का दो से ढ़ाई किलो तक दूध घट गया है, जबकि पशुओं की खुराक में कोइ कमी नहीं की गई है। पशुओं को धुंध शुरू होने से पहले ही बोरी या कंबल ओढ़ाकर कमरे में बांध दिया गया था।
पशुओं में मुंह-खुर की बीमारी और बचाव
पशुओं को ठंड के साथ-साथ खुरपका-मुंहपका व अन्य बीमारियों का भी खतरा रहता है। पशुपालकों के लिए यह जानना जरूरी होगा कि खुरपका-मुंहपका रोग क्या है। इसमें मुंह और खुर में घाव हो जाते हैं, जिसके कारण पशु चल नहीं पाता और खाने में दिक्कत आती है। यदि पशु चारा नहीं खायेंगे तो शरीर कमजोर हो जायेगा। अगर यह किसी भी जानवर को एक बार हो जाए तो इसका असर जीवन भर रहता है। अगर यह पशु को शिशु अवस्था में हो तो उन्हें बचाना मुश्किल हो जाता है। वयस्कों की तुलना में बच्चों में मृत्यु दर अधिक है। यह बैक्टीरिया से फैलता है। यदि यह एक व्यक्ति के साथ होता है, तो यह अन्य पशुओं को भी हो सकता है।
पशुओं को सर्दी से इस तरह बचाये
ठंड से पशुओं को बचाने का उपाय बताते हुए उन्होंने कहा कि इस कड़ाके की ठंड में शाम होते ही पशुओं को अंदर बांध दें और उन्हे कंबल से ढ़ककर रखें। लेकिन ध्यान रहे की पर्याप्त हवा का संचार उस जगह पर होता रहे। पशुओं के नीचे सूखा-भूसा बिछाकर रखें। पशुओं को ठंडा पानी न पिलाएं। उन्हें ताजा पानी दें गंदा पानी न दें। धूप निकलने पर ही पशु को नहलाएं। साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। सप्ताह में एक बार चूना और राख मिलाकर सतह पर छिड़कें और साफ करें। उन्होंने कहा कि यदि पशु की नाक से पानी पड़ता दिखाई दे तो उसे सफेदे के पत्ते डालकर भांप दें। पशु चिकित्सक ने बताया कि पशु के बीमार होने पर पशुपालक तुरंत पशु चिकित्सालय में संपर्क करें।