बिहार में रोजगार की तलाश कर रहें युवाओं के लिए खुशखबरी है। जल्द ही राज्य में 4 नई फैक्ट्रियां लगेंगी। मुजफ्फरपुर, वैशाली, नालंदा और भागलपुर में ये फैक्ट्रियां खुलेंगी। इनसे करीब 7 हजार लोगों को रोजगार मिलेगा। करीब 318.65 करोड़ रुपये का निवेश होगा। 2026 तक ये पूरी तरह चालू हो जाएंगी।
कैलसिंड पेट्रोलियम कोक, उबले चावल (पारबॉयल्ड राइस), गन्ने से इथेनॉल, बिस्कुट और रस्क जैसी चीजें बनेंगी। इन फैक्ट्रियों के खुलने से किसानों और छोटे कारोबारियों को फायदा होगा। उद्योग मंत्री नीतीश मिश्रा के मुताबिक इसमें पर्यावरण का ध्यान रखा जाएगा।
इन फैक्ट्रियों के निर्माण से बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की उम्मीद बढ़ी है। उद्योग विभाग ने पर्यावरण के अनुकूल औद्योगिक सेटअप की शर्त रखी है, जिसे पूरा करने के बाद ही उत्पादन शुरू होगा। कैलसिंड पेट्रोलियम कोक की फैक्ट्री लगने से भविष्य में एल्युमीनियम, स्टील, टाइटेनियम और सिंथेटिक ग्रेफाइट से संबंधित उद्योगों की संभावनाएं भी बढ़ेंगी।
कैलसिंड पेट्रोलियम कोक का उपयोग एल्युमीनियम, स्टील और टाइटेनियम को गलाने वाले एनोड और सिंथेटिक ग्रेफाइट के लिए फीड स्टॉक के रूप में किया जाता है।
पारबॉयल्ड राइस और इथेनॉल बनेगा
पारबॉयल्ड राइस यानी उबले चावल बनाने की फैक्ट्री से स्थानीय किसानों को फायदा होगा। भुजिया चावल का उत्पादन बढ़ेगा। इसे नेपाल और पश्चिम बंगाल जैसे पड़ोसी राज्यों में निर्यात भी किया जा सकेगा। इससे किसानों को अपनी फसल का अच्छा दाम मिलेगा।
गन्ने से इथेनॉल बनाने की फैक्ट्री से भी किसानों को फायदा होगा। उद्योग मंत्री नीतीश मिश्रा के अनुसार अभी इथेनॉल बनाने के लिए ज्यादातर मक्का का इस्तेमाल होता है। गन्ने से इथेनॉल बनाने की फैक्ट्री लगने से किसानों के पास चीनी मिलों के अलावा एक और विकल्प होगा। अपना गन्ना बेचने के लिए उन्हें एक नया बाजार मिलेगा।
ग्रामीण विकास में योगदान
इन फैक्ट्रियों से न केवल औद्योगिक बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों का भी विकास होगा। छोटे और मध्यम उद्योगों की स्थापना के लिए प्रेरणा मिलेगी, जिससे स्वरोजगार और लघु उद्यमिता को बढ़ावा मिलेगा। इससे स्थानीय व्यापार और सेवा क्षेत्रों में भी वृद्धि होगी, जिससे व्यापक आर्थिक विकास सुनिश्चित होगा।
उद्योग विभाग ने फैक्ट्री मालिकों को पर्यावरण के अनुकूल तकनीकों का उपयोग सुनिश्चित करने की शर्त रखी है। इसके अंतर्गत फैक्ट्री के निर्माण और संचालन के दौरान पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों को कम करने के उपाय किए जाएंगे। इन शर्तों के बिना उत्पादन की अनुमति नहीं दी जाएगी, जो इस पहल को अधिक टिकाऊ बनाता है।