Punjab, गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे पुत्रों बाबा जोरावर सिंह, बाबा फतेह सिंह और माता गुजरी जी की अविश्वसनीय शहादत की याद में, 25 से 27 दिसंबर तक फतेहगढ़ साहिब में शहीद जूड मेल आज से शुरू हो गया है। सुबह से ही श्रद्धालुओं का एक बड़ा समूह गुरुद्वारा श्री फतेहगढ़ साहिब में मत्था टेकने के लिए लंबी कतारों में खड़ा देखा गया।
गुरुद्वारा श्री ज्योति सरूप साहिब में आज अखंड पाठ साहिब शुरू हो गया है, जिसकी अरदास गुरुद्वारा श्री फतेहगढ़ साहिब के प्रधान गंथी भाई हरपाल सिंह ने की, जिसका भोग 27 दिसंबर को पड़ेगा। उसी दिन सुबह 9 बजे गुरुद्वारा फतेहगढ़ साहिब से विशाल नगर कीर्तन शुरू होगा, जो दोपहर करीब 1 बजे गुरुद्वारा ज्योति सरूप साहिब में समाप्त होगा।
फतेहगढ़ साहिब के हजारों परिवार आज भी पोह (दिसंबर) महीने की कड़कड़ाती ठंड में जमीन पर सोते हैं। इस महीने में न तो विवाह समारोह किए जाते हैं और न ही अन्य खुशी के काम किए जाते हैं। इस महीने में लोग सादा खाना पसंद करते हैं। यह परंपरा 315 साल से चली आ रही है। भारत के विभिन्न राज्यों और विदेशों से आने वाले अधिकांश सिख समुदाय गुरुद्वारा श्री फतेहगढ़ साहिब और गुरुद्वारा श्री ज्योति सरूप की सराय में जमीन पर सोते हैं।
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बता दें कि दुनिया की सबसे महंगी जमीन भी फतेहगढ़ साहिब में ही है. यह जमीन दीवान टोडर मॉल ने 315 साल पहले बाबा जोरावर सिंह, बाबा फतेह सिंह और माता गुजरी जी के अंतिम संस्कार के लिए खरीदी थी। टोडर मॉल ने चार वर्ग मीटर जमीन पर 78 हजार सोने की मोहरें बिछाकर यह जमीन खरीदी। अब इस भूमि पर गुरुद्वारा श्री ज्योति सरूप साहिब सुशोभित है। गुरुद्वारा साहिब में जहां पालकी साहिब को सजाया गया है, वहीं पर छोटे साहिबजादों और माता गुजरी जी का अंतिम संस्कार किया गया। अवशेषों को पास ही जमीन में गाड़ दिया गया, उस स्थान को कवच से सजाया गया है।
गौरतलब है कि फतेहगढ़ साहिब की ऐतिहासिक धरती पर छोटे साहिबजादों और माता गुजर कौर ने शहादत का जाम पिया था। इसी स्थान पर छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह, बाबा फतेह सिंह जी को वजीद खान ने दीवार में जिंदा चुनवाया था। गुरुद्वारा श्री फतेहगढ़ साहिब उस स्थान पर सुशोभित है और भोरा साहिब उस स्थान पर स्थित है जहां निहान में छोटे साहिबजादों का जन्मोत्सव मनाया गया था। वह दीवार आज भी मौजूद है।