कुरुक्षेत्र : पद्मश्री एवं हरियाणा के प्रसिद्ध लोक कलाकार डॉ महावीर गुड्डू ने अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव को 30 सालो से एक जीवन की तरह जीया हैं। इस समय अवधि के दौरान महोत्सव के मंच से हजारों कलाकारों को आगे बढ़ते हुए और अपना मुकाम हासिल करते हुए अपनी आंखों से देखा हैं। इस महोत्सव के मंच के सहारे ही सरकार ने उन्हें वर्ष 2024 में पद्मश्री अवार्ड से नवाजा है।
पद्मश्री डॉ महावीर गुड्डू ने शुक्रवार को अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में विशेष बातचीत करते हुए कहा कि 14 अगस्त 1972 से कला और संस्कृति के मंच से जुड़ने का एक मौका मिला। इस मंच के साथ जुड़ने में उनके दादा स्वतंत्रता सेनानी पंडित किशनू राम, पिता एवं लेखक पंडित श्रीचंद और माता किशनी देवी का अहम योगदान रहा हैं। इसके साथ ही मास्टर सुभाष ने उनकों तराशने का काम किया। इस दौरान गांव गंगोली में प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के डिग्री हासिल की। इतना ही नहीं 2 वर्ष पूर्व अमेरिका लॉस एंजेलिस में शिक्षा और संस्कृति में पीएचडी की उपाधि मिली। इस शिक्षा के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव से भी पिछले 30 सालों से जुड़े हुए हैं।
उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव के छोटे से बड़ा होते हुए अपनी आंखों से देखा हैं। इस 30 साल की अवधि में अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव के मंच से हजारों कलाकारों ने अपना मुकाम हासिल किया। ये कलाकार आज भी इस मंच के साथ जुड़े हुए हैं। इस महोत्सव को धर्म संस्कृति और शिक्षा का महाकुंभ कहे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि इस मंच पर धार्मिक, सांस्कृतिक और शिक्षा को लेकर कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता हैं। यह तीनों विषय अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में रम चुके हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, केन्द्रीय मंत्री मनोहर लाल का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि सभी के प्रयासों से संस्कृति का यह महाकुम्भ नित रोज एक नई इबादत लिखने का काम कर रहा हैं। इस मौके पर अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव मेला प्राधिकरण के सदस्य सौरभ चौधरी उपस्थित थे।
पंडित लख्मी चंद अवार्ड से लेकर पद्मश्री तक का सफर
प्रसिद्ध लोक कलाकार डॉ महावीर गुड्डू ने अपनी कला के दम पर सबसे पहले पंडित लख्मीचंद अवार्ड हासिल किया। इसके उपरांत हरियाणा कला रत्न, पंडित लख्मीचंद शिक्षा एवं संस्कृति पुरस्कार, लंदन भारत गौरव अवार्ड, वर्ष 2023 में संगीत एवं नृत्य में राष्ट्रपति अवार्ड हासिल किया। इसके बाद भारत सरकार की तरफ से अप्रैल 2024 में लोक कला के संरक्षण संवर्धन और समाज में कला और संस्कृति के प्रति जागरूकता लाने के लिए पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के मंच को पूजते है मां के समान
प्रसिद्ध लोक कलाकार महावीर गुड्डू का कहना है कि बेशक उन्होंने जींद के गांव गंगोली में अपनी प्राथमिक शिक्षा हासिल की लेकिन कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के मंच को अपनी मां की तरफ पूजते हैं। इस मंच से ही उनके सांस्कृतिक और कला के जीवन की शुरुआत हुई। वर्ष 1985 में ऑल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी के पहले युवा महोत्सव में क्रियेटिव डांस और नाटक की प्रस्तुति देने के साथ-साथ दिल्ली में 22 देशों के युवा महोत्सव में उनके डांस, नृत्य और संगीत की खूब सराहना की गई और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में जिसे आज रत्नावली का नाम दिया गया है उस समय हरियाणा डे पर 5 बार चुटकुलों और 5 बार डांस में प्रथम पुरस्कार मिला। इतना ही नहीं वर्ष 1987 और 1988 में संगीत और डांस में 2 बार मैन ऑफ सीरीज का खिताब भी विश्वविद्यालय की तरफ से दिया गया।
राजनीति से दूर 17 साल राजकीय स्कूल में लेक्चरर व 13 साल प्रिंसिपल के रूप में दी सेवाएं
पद्मश्री महावीर गुड्डू का रोम-रोम कला और संस्कृति से रमा हुआ है लेकिन युवा पीढ़ी को शिक्षित करने में भी उनका कोई साहनी नहीं हैं। इस लोक कलाकार ने प्रदेश में अलग-अलग जगहों पर 17 साल राजकीय स्कूलों में लेक्चरर तथा 13 साल प्रिंसिपल के रूप में अपनी सेवाएं दी हैं। इस दौरान देश की भावी पीढ़ी को शिक्षा देने के साथ-साथ कला और संस्कृति का ज्ञान देकर एक बच्चे का सर्वागिक विकास करने का काम किया।