हरियाणा में पराली जलाने को लेकर राज्य सरकार के सख्त प्रवर्तन, आधुनिक निगरानी प्रणाली और किसानों को वैकल्पिक उपायों के प्रति प्रेरित करने के सतत प्रयास रंग लाने लगे हैं। बीते वर्ष की तुलना में धान की फसल के अवशेष जलाने से जुड़ी सक्रिय आग की घटनाओं में 95 प्रतिशत की उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की रिपोर्ट के अनुसार, जहाँ 2024–25 सीज़न के दौरान राज्य में पराली जलाने की 150 घटनाएँ दर्ज की गई थीं, वहीं 6 अक्टूबर, 2025 तक इनकी संख्या घटकर केवल सात रह गई है। यह जानकारी मुख्य सचिव अनुराग रस्तोगी की अध्यक्षता में हुई एक उच्च-स्तरीय समीक्षा बैठक में दी गई
मुख्य सचिव रस्तोगी ने कहा कि यह हरियाणा के कृषि और प्रशासनिक ढाँचे के बीच बेहतर समन्वय का परिणाम है, जिससे न केवल वायु गुणवत्ता में सुधार हुआ है बल्कि पर्यावरणीय सततता की दिशा में एक नई मिसाल भी कायम हुई है।
उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिए कि वे धान कटाई के पूरे सीजन के दौरान सतर्क रहें और यह सुनिश्चित करें कि राज्य में स्वच्छ वायु और सतत कृषि की दिशा में यह प्रगति निरंतर बनी रहे।
बैठक में बताया गया कि सभी जिलों में उल्लंघनकर्ताओं के विरुद्ध त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए पराली सुरक्षा बल गठित किए गए हैं। रिपोर्ट की गई सात घटनाओं में से तीन में चालान जारी किए गए हैं, प्राथमिकी दर्ज की गई है और कृषि अभिलेखों में रेड एंट्री की गई हैं। उल्लेखनीय है कि इनमें से दो घटनाएँ कृषि से संबंधित नहीं पाई गईं। इनमें से एक फरीदाबाद में कचरा जलाने से और दूसरी सोनीपत में औद्योगिक अपशिष्ट जलाने से संबंधित थी।
9,036 नोडल अधिकारी तैनात किए गए
सभी जिलों में कुल 9,036 नोडल अधिकारी तैनात किए गए हैं, जो आवश्यक संख्या 8,494 से अधिक हैं। प्रत्येक अधिकारी को रेड और येलो ज़ोन में 50 किसानों तथा अन्य क्षेत्रों में 100 किसानों की निगरानी की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है। सभी नोडल अधिकारियों को एक नई मोबाइल एप्लिकेशन के माध्यम से प्रशिक्षित किया जा रहा है। ये अधिकारी किसानों से निरंतर संवाद बनाए रखेंगे, मशीनरी के उपयोग की निगरानी करेंगे और आग की किसी भी घटना की रिपोर्ट मोबाइल प्लेटफॉर्म के माध्यम से रियल-टाइम में करेंगे।
राज्य सरकार ने किसानों को पराली जलाने के विकल्प के रूप में पर्याप्त मशीनरी उपलब्ध कराने में उल्लेखनीय प्रगति की है। फसल अवशेष प्रबंधन (सीआरएम) मशीनरी की पहचान का 90 प्रतिशत कार्य पूरा हो चुका है और 51,526 मशीनें कार्यशील हैं। नई मशीनरी की खरीद प्रक्रिया भी तेज गति से जारी है और अब तक 94.74 प्रतिशत कार्य पूरा हो चुका है। लॉटरी सिस्टम से चयनित 14,088 मशीनों में से 8,213 के परमिट डाउनलोड किए जा चुके हैं और 7,781 के बिल अपलोड हो चुके हैं। फरीदाबाद, झज्जर और रोहतक जैसे जिलों ने 98 प्रतिशत से अधिक की प्रगति हासिल की है, जो इस कार्यक्रम के बेहतर क्रियान्वयन को दर्शाता है।
पराली खरीदे जाने की योजना
फसल अवशेष के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार ने इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (आईओसीएल) के पानीपत स्थित एथनॉल प्लांट के साथ साझेदारी की है। इस संयंत्र द्वारा पानीपत ज़िले से लगभग 30,000 मीट्रिक टन तथा आसपास के जिलों से 1.7 लाख मीट्रिक टन पराली खरीदे जाने की योजना है। इस पहल से किसानों को पराली जलाने के बजाय आर्थिक रूप से लाभकारी विकल्प मिलेगा और साथ ही स्वच्छ, नवीकरणीय ईंधन के उत्पादन को भी बढ़ावा मिलेगा।
राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय और वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) के निर्देशों के अनुरूप पराली जलाने के विरुद्ध जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई है। ‘मेरी फसल मेरा ब्यौरा’ पोर्टल पर पंजीकृत किसानों को साप्ताहिक एसएमएस संदेश भेजे जा रहे हैं, जिनमें यह स्पष्ट किया गया है कि पराली जलाने पर चालान, एफआईआर और खेत रिकॉर्ड में रेड एंट्री जैसी कड़ी कार्रवाई की जा सकती है।
प्रस्तावों को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया जारी
पराली के भंडारण हेतु उपयुक्त ढांचा उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकार ने एक व्यापक अंतराल विश्लेषण (गैप एनालिसिस) शुरू किया है। पाँच जिलों ने 205 एकड़ अतिरिक्त पंचायत भूमि की आवश्यकता बताई है। कुरुक्षेत्र जिले ने भूमि उपलब्ध करा दी है, जबकि करनाल, पानीपत और सोनीपत जिलों में प्रस्तावों को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया जारी है। अंबाला जिले में एग्रीगेटर्स ने पंचायत भूमि का उपयोग करने के बजाय स्वयं निजी भूमि की व्यवस्था करने का निर्णय लिया है।