Rohtak : नवरात्र (Navratri) के दूसरे दिन श्रद्धालुओं ने मंदिरों और घरों में मां ब्रह्मचारिणी का विधि विधान से पूजन किया गया। श्रद्धालुओं ने मां ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना कर दुर्गा सप्तशती का पाठ किया।
वहीं रोहतक के माता दरवाजा स्थित संकट मोचन मंदिर में ब्रह्मलीन गुरुमां गायत्री जी के सानिध्य में शारदीय नवरात्र के दूसरे दिन शुक्रवार को भक्तों ने मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप मां ब्रह्माचारिणी की पूजा अर्चना श्रद्धा, भक्तिभाव से की गई। भक्त डांडिया और माँ के भजनो पर नाचते गाते और भक्ति में मग्न रहे ।
गद्दीनशीन साध्वी मानेश्वरी देवी और भक्तों ने मां की अखंड ज्योत के दर्शन करके जगदम्बे भवानी से सुख समृद्धि की मन्नतें मांगी, वहीं श्रद्धालुओं द्वारा माता के जयघोषो से वातावरण भक्तिमय रहा। भक्तों ने अखंड पाठ व दुर्गा स्तुति का पाठ भक्तिभाव से किया। तत्पश्चात गुरुजी का सत्संग, कीर्तन, प्रवचन, पंडित अशोक शर्मा द्वारा आरती और प्रसाद वितरित किया गया। यह जानकारी सचिव गुलशन भाटिया ने दी।
भगवान शिव को पति के रूप में पाने हेतु कड़ी तपस्या की थी मां ब्रह्मचारिणी ने : साध्वी मानेश्वरी देवी
साध्वी मानेश्वरी देवी ने प्रवचन देते हुए कहा कि पौराणिक कथाओं के अनुसार सती के रूप में स्वयं को यज्ञ की अग्नि में भस्म करने वाली माँ ब्रह्मचारिणी ने पर्वतराज हिमालय के यहां मां पार्वती के रूप में जन्म लिया। माता ने इस जन्म में भी भोलेनाथ को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कड़ी तपस्या की थी। मां ब्रहमचारिणी स्वेत वस्त्र पहने दाएं हाथ में अष्टदल की माला और बाएं हाथ में कमण्डल लिए हुए सुशोभित है। मां के इस स्वरूप को ज्ञान, तपस्या और वैराग्य, ब्रह्म में लीन और कठोर तपस्या के कारण माता के इस स्वरूप को ब्रह्मचारिणी कहा गया है।इस दिन माता की पूजा अर्चना और उपवास करने से जीवन में सुख शांति और समृद्धि बनी रहती है और हर समस्या से मुक्ति मिलती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी ने हिमालय के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया था और भोलेनाथ को पति स्वरूप प्राप्त करने के लिए हजारों वर्षों तक ब्रह्मचारिणी का रूप धारण कर कठोर तपस्या की थी।