Tuesday, May 21, 2024
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रोहतक पुलिस पता लगाएगी किसके हैं पीजीआई में पकड़े गए करोड़ों के इंप्लांट, निदेशक ने बनाई कमेटी

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हाईकोर्ट में निजी सप्लावर ने दावा किया था कि वह कई साल से सामान दे रहा है। जो सामान बच जाता है, यह वापस ले लेते हैं। यह उनका सामान है और लौटाया जाए। लेकिन सप्लायर साबित नहीं कर पाया कि यह सामान उसी का है।

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रोहतक। रोहतक पुलिस अब पता लगाएगी कि पीजीआई में 5 साल पहले पकड़े गए करोड़ों के इंप्लांट किसके हैं। इस मामले में पीजीआई निदेशक ने तीन सदस्यीय कमेटी बना दी गई है। तीन सदस्यीय कमेटी में हड्डी रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. रूप सिंह, प्रदीप कंबोज और असिस्टेंट सिक्योरिटी ऑफिसर शामिल हैं। यह कमेटी पकड़े गए इंप्लांट पुलिस को सौंपेंगी। अब पुलिस को पता करना होगा कि इन इंप्लांट का मालिक कौन है। पुलिस के सामने इंप्लांट के मालिक का पता लगाना बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि जिस सप्लायर ने कोर्ट में सामान वापस देने की याचिका दी थी वह खारिज हो चुकी है।

हाईकोर्ट में निजी सप्लावर ने दावा किया था कि वह कई साल से सामान दे रहा है। जो सामान बच जाता है, यह वापस ले लेते हैं। यह उनका सामान है और लौटाया जाए। लेकिन सप्लायर साबित नहीं कर पाया कि यह सामान उसी का है। दूसरी ओर इस मामले में रजिस्ट्रार के खिलाफ हड्डी रोग विभाग के डॉ. राकेश गुप्ता की याचिका भी खारिज कर दी। गई थी। फिलहाल डॉ. राकेश गुप्ता वीआरएस ले चुके हैं। इंप्लांट पुलिस को सौंपने को लेकर 20 जुलाई को हाईकोर्ट ने आदेश दिए थे और 18 अगस्त को डायरेक्टर ने एक पत्र जारी करके पांच दिन के अंदर इंप्लांट सौंपने के लिए कहा है। पांच दिन पूरे हो चुके हैं, ऐसे में हो सकता है कि आज इंप्लांट पुलिस को सौंपे जाएं।

बता दें कि पीजीआई के तत्कालीन नित्यानंद शर्मा और सुरक्षा अधिकारी नरेंद्र सरोहा ने 2018 में ओथों के इम्प्लॉट जब्त किए थे। इनकी कीमत करीब 9 करोड़ रुपये बताई जा रही थी, लेकिन बाद में कीमत पर भी विवाद हो गया था। शिकायत पुलिस और जीएसटी को भी इसकी सूचना दी गई थी। जीएसटी विभाग ने इंप्लांट की अनुमानित राशि का आंकड़ा लगाया था। लेकिन किसी ने इस इंप्लांट को अपने कब्जे में नहीं लिया था। वहीँ 20 जुलाई को हाईकोर्ट ने इस मामले में संस्थान को कहा था कि एक टीम गठित करके सामान पुलिस को सौंपा जाए। पुलिस को भी चार सप्ताह का समय दिया था कि वह पता लगाए कि पकड़े गए इन इंप्लांट का मालिक कौन है। अब पांच साल से फंसा पड़ा पुलिस के पास आ गया है।

पीजीआईएमएस में जब यह मामला सामने आया तो कुलसचिव डॉ. एचके अग्रवाल ने हाईकोर्ट में एफिडेविट दिया था कि संस्थान में निजी सप्लायर सामान नहीं ला सकता। यह भी कहा था कि कुछ डॉक्टरों की मिलीभगत से यह काम होता है, इससे संस्थान की बदनामी होती है। इस पर डॉ. राकेश गुप्ता सहित करीब 35 डॉक्टरों ने कुलसचिव के खिलाफ मानहानी का दावा कर दिया था। इस याचिका को भी खारिज किया जा चुका है।

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