Tuesday, October 7, 2025
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प्राइम टाइम टीवी डिबेट की चूलें हिलाने वाली आरजेडी की ‘ऑसम 2सम’ प्रवक्ताएं

नई दिल्लीः मिलिए आरजेडी की इन तूफानी पितरेल प्रवक्ताओं, प्रियंका भारती एवं डा. कंचना यादव से। प्राइम टाइम टीवी डिबेट की चूलें हिला कर रख दी हैं इन्होंने। बकौल प्रियंका भारती वे ज्वालामुखी की मानिंद प्रकट हुई हैं। ये दोनों आज के राजनीतिक विमर्श की ऐसी परिघटना बन कर उभरी हैं जिनकी अनदेखी करना किसी के बूते की बात नहीं रही है। ताजा हवा के तेज झोंके की तरह हैं ये। टीवी डिबेट की नई बयार, नई खूशबू (फ्लेवर), नई ‘आइकन’ बन कर छा गई हैं। टीवी बहसों में अभी इनका कोई सानी नहीं है।

आत्मविश्वास से लबरेज बहुजन की ये बेटियां सामाजिक न्याय के विरोधियों की आंखों में आंखें डालकर बात कर रही हैं, निडर हमेशा।। इनकी चमक ने अक्सर हिकारत भरे उपनामों से अलंकृत की जाने वाली आरजेडी पार्टी के चारो तरफ एक नए औरा (आभामंडल) की रचना कर दी है। इन दोनों ने आरजेडी पर चस्पा ‘जंगलराज’ एवं ‘चारा’ भ्रष्टाचार जैसे कलंको की प्रभावी काट की है और इसके पीछे की कथित ‘साजिश’ को बेनकाब करने की असरदार कोशिश भी की है। बहस में कभी कभी सबकी सिट्टी पिट्टी गुम कर देती हैं।

तितरबितर (डिसरप्शन) करना अगर आज युग धर्म है तो राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की जेएनयू में तपी तपाई इन दो अल्पवयस्क प्रवक्ताओं, प्रिंयंका भारती एवं डा. कंचना यादव ने इसे बखूबी अंजाम दिया है। प्राइम टाइम डिबेट में भले ही विरोधी प्रवक्ताओं की आंखों की किरकिरी बन गई हों लेकिन अब वे अपरिहार्य हो गई हैं। इनकी अनुपस्थिति से पूरी बहस बेरंग हो जाती है। ये प्रवक्ताएं बहस के श्रोताओं की आदत बनती जा रही हैं। भले इनके विचार कुछ श्रोताओं को न भाते हों, लेकिन वे इन्हें सुनने के मोह का संवरण नहीं कर पा रहे। हर डिबेट में इन्हें बुलाना प्रमुख न्यूज टीवी चैनल वालों की मजबूरी हो गई है। टीआरपी के भूक्खड़ चैनलों की जुर्रत नहीं रह गई है इनकी अनदेखी कर दें। ठोस तर्कों, तथ्यों, व्यंगात्मक शैली, धारा प्रवाह वक्ततृत्व का ‘कंप्लीट पैकेज’ हैं ये दोनों।

घाघ प्रवक्ताओं एवं गोदी होस्ट से घिरे होने के बावजूद जरा भी विचलित नहीं दिखती। हौले हौले तो कंचना भी मुस्कुराती रहती हैं लेकिन प्रियंका के चेहरे पर खिली मुस्कान तो देखते ही बनती है। उसकी वह मुस्कान कोई ओढ़ी हुई नहीं बल्कि आत्मविश्वास की परिणति है। उसकी मुस्कान इस बात का ऐलान भी होता है कि वे विरोधी प्रवक्ताओं से दो चार करने को हमेशा तैयार हैं, उनके नैरेटिव की चिंदी चिंदी उड़ाने का माद्दा है उनमें।

इतनी कम उम्र की होने के बावजूद राजनीति की उनकी बेहद गहरी समझ एवं पढ़ाई. तथ्यों व ज्ञान के उनके रेंज भी चमत्कृत करते हैं। यह तो साफ जाहिर है कि वे राजनीति की गहन अध्येता रही हैं। फ्रियंका जेएनयू में छात्र संघ के अध्यक्ष पद का चुनाव भी लड़ चुकी हैं। मनुस्मृति की कापी जलाने की वजह से खासी सुर्खियों में भी रही हैं। कंचना कैंसर जैसे कठिन विषय पर पीएचडी कर अभी अभी डा. कंचना बनी हैं। यह सवाल दिमाग में उठता कि आखिर ये रत्न आरजीडी के हाथ कैसे लग गए। मजे की बात है कि अक्सर 9वीं फेल के ताने से दो चार होने वाले आरजेडी के सुप्रीमो एवं चीफ मिनिस्टर की रेस में अभी सबसे आगे चल रहे तेजस्वी यादव ने जेएनयू से इन मोतियों को चुना है।

बहुजन एवं सामाजिक न्याय के विमर्श की सोलहो कलाओं से लैस इन्हें किसी मुद्दे पर रोकना टोकना आसान नहीं है। अकाट्य तर्कों एवं तथ्यों के साथ इन ‘मुंहफट’ प्रवक्ताओं ने टीवी डिबेट के पूरे ‘इकोसिस्टम’ को डिसरप्ट (झकझोर) कर रख दिया है। सामाजिक न्याय के मर्म के पक्के रंग में पगी एवं बहुजन की बेटियां होने के गरूर से उन्नत इन प्रखर व मुखर प्रवक्ताओं के बारे अभी जितना भी कहा जाए कम है। देखना है ये दोनों राजनीति के किस मुकाम तक पहुंचती हैं। अगर आज आरजेडी लोगों के सिर पर चढ़ कर बोल रहा है तो उसमें इन दोनों की बड़ी भूमिका है।

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