रोहतक। रोहतक में ठंड शुरू होते ही सांस व हृदय रोगियों की समस्याएं बढ़ने लगी हैं। बड़ों के साथ ही बच्चों में भी सांस फूलने की समस्या शुरू हो गई है। बुधवार को सांस फूलने, जुकाम व तेज बुखार वाले 13 बच्चों को पीजीआई में भर्ती किया गया। इसमें सबसे ज्यादा सांस की परेशानी उन लोगों को हो रही है, जो पुरानी टीबी, कोरोना से गंभीर पीड़ित रहे और लंग्स में इंफेक्शन के शिकार रहे हैं।
ओपीडी में जांच शुरू
इसके अलावा धूमपान करने वाले लोगों को भी सांस की तकलीफ का सामना करना पड़ रहा है। मंगलवार को दो दिन बाद खुले सिविल अस्पताल में 150 से ज्यादा सांस के रोगी जांच के लिए पहुंचे। मंगलवार को सुबह सात बजे से मरीजों के आने का सिलसिला सुबह हो गया। आठ बजे अल्ट्रासाउंड, एक्स-रा समेत ओपीडी में पर्चे बनने शुरू हुए। इससे पहले मरीजों की लाइनें लग गए। नौ बजे से ओपीडी में जांच शुरू हुई। जांच में इनके फेफड़ों और दिल की क्षमता घटी हुई निकल रही है। दवाएं खाने के बावजूद न तो बीपी नियंत्रित हो रहा और न ही सांस की तकलीफ दूर हो रही। ऐसे में डॉक्टर मरीजों की दवाएं बदलने के साथ ही खुराक बढ़ा रहे हैं।
150 मरीज अकेले सांस के रोगी
मेडिसिन विभाग से लेकर, चर्म रोग कक्ष, बाल रोग विशेषज्ञ कक्ष और गायनी व ईएनटी और नेत्र रोग कक्ष के बाहर मरीजों की लंबी लाइनें लग गई। सबसे ज्यादा भीड़ मेडिसिन वार्ड और बाल रोग कक्ष के बाहर रही। वरिष्ठ फिजिशियन ने बताया कि मंगलवार को 300 मरीजों ने ओपीडी में जांच कराई। बताया कि 150 मरीज अकेले सांस के रोगी थे। बताया कि सर्दी और वायु प्रदूषण बढ़ने के साथ ही पहले से ही अस्थमा एवं सांस के रोगियों की परेशानियां बढ़ रही है। 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोग सांस रोगों की चपेट में अधिक आ रहे हैं। मास्क लगाकर रहें। ऑक्सीजन स्तर कम होने पर तुरंत चिकित्सक की राय लें।
क्षतिग्रस्त हो जातीं दिल की मांसपेशियां
पीजीआई के कार्डियोलॉजी विभाग के डॉ. का कहना है कि बुखार, सर्दी और खांसी से फेफड़ों में संक्रमण हो जाता है। सांस लेने की तकलीफ बढ़ जाती है। दिल को पर्याप्त मात्रा में खून नहीं मिलता है। इससे दिल की मांसपेशियां प्रभावित हो जाती हैं। इसका असर दिल को खून पहुंचाने वाली धमनियों पर भी पड़ता है। खून चिपचिपा व गाढ़ा होने लगता है। इससे दिल फेल होने के साथ दौरा पड़ने की आंशका बढ़ जाती है। दवाओं से इस समस्या पर काबू पाया जा सकता है। जिनमें दवाएं कारगर नहीं होती हैं, उनमें एंजियोप्लास्टी की जरूरत पड़ती है।
पेशाब बढ़ाने की दवाओं से दे रहे राहत
डॉक्टर्स बताते हैं कि सर्दी में पसीना रहते हैं। इससे फेफड़ों में पानी की मात्रा नहीं निकलता है, जबकि लोग पानी उसी अनुपात में पीते बढ़ जाती है। संक्रमण बढ़ने पर निमोनिया भी हो सकता है। इसका असर दिल की धमनियों पर पड़ता है। पेशाब बढ़ाने की दवाएं देकर मरीजों को राहत दी जाती है। ये मरीज सर्दी में खास सावधानी बरतें। सर्दी में ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाता है। लिहाजा नियमित जांच कराएं।
फेफड़ों की कार्यक्षमता कमजोर हुई
पीजीआई के चेस्ट फिजीशियन का कहना है कि तापमान में गिरावट से ओपीडी में सांस के 120 मरीज रोज आ रहे हैं। हफ्ते भर पहले तक यह आंकड़ा 100 के भीतर था। सर्दी से बुखार व गले में जकड़न से फेफड़ों पर दबाव बढ़ गया है, जिससे इसकी कार्यक्षमता कमजोर हो रही है। कई मरीज अस्थमा अटैक के आ रहे हैं। इनहेलर व दवाओं की डोज बढ़ानी पड़ रही है।
बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम
शिशु रोग विशेषज्ञ डा. प्रमिला रामावत के अनुसार, अभी तेज सर्दी का मौसम शुरू होने ही वाला है। बढ़ती ठंड के साथ बीमार होने की आशंका भी बढ़ने लगती है। नन्हे बच्चे, खासकर जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है, वे जल्दी बीमार हो जाते हैं। ठंड बढ़ने से सांस संबंधी रोग बढ़ने की आशंका भी रहती है। ऐसे में इन बीमारियों से बच्चों की सुरक्षा के लिए स्वजन को विशेष तौर पर सावधानियां रखने की आवश्यकता है। जरा सी लापरवाही बच्चों को अस्पताल में भर्ती करा सकता है। सर्दी शुरू होते ही बच्चे बुखार और सर्दी की चपेट में आ रहे हैं।
इन लक्षणों को न करें अनदेखा
- तेजी से सांस लेना।
- बलगम के साथ खांसी आना।
- सीने में इंफेक्शन व जकड़न होना।
- कमजोरी आ जाना।
इन सावधानियों को बरतें
- मरीजों को हमेशा गर्म कपड़े पहनने चाहिए।
- बाहर निकलने पर नाक और मुंह को कवर जरूर करें।
- अस्थमा और काला दमा पीड़ितों के कमरे में अंदर धूपबत्ती न जलाएं।
- घरों में अंगीठी, हीटर आदि के प्रदूषण से मरीज को बचाएं।
- मरीज के लिए सप्ताह में तीन से चार बार 45-45 मिनट के लिए व्यायाम बेहद आवश्यक है।