Wednesday, October 23, 2024
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रोहतक ईएसआई डिस्पेंसरी में स्पेशलिस्ट नहीं, ना इलाज ना दवाई, मरीज बाहर से दवाएं खरीदने को मजबूर

मरीजों के अनुसार ईएसआई डिस्पेंसरी से पहले सिविल अस्पताल रेफर किया जाता है। उसके बाद ईएसआई पैनल में शामिल निजी अस्पतालों में रेफर किया जाता है, वहां का स्टाफ प्रॉपर सहयोग नहीं करता। साथ ही टेस्ट आदि के पैसे उन्हें खुद देने पड़ते हैं।

रोहतक। रोहतक में मौसम बदलते ही बुखार व अन्य बीमारियों का प्रकोप बढ़ गया है। ऐसे में निचले व मध्यमवर्गीय लोगों के लिए ईएसआई अस्पताल व डिस्पेंसरी एक बेहतर विकल्प है, लेकिन शहर की पुराना हाऊसिंग बोर्ड कॉलोनी स्थित ईएसआई डिस्पेंसरी में अव्यवस्थाएं व्याप्त होने से यहां आने वाले मरीजों को समस्या का सामना करना पड़ रहा है। इलाज के लिए आई एक मरीज ने बताया कि पर्ची बनवाने के लिए भी यहां पर कर्मचारी कई बार बेवजह परेशान करते हैं। हर बार डॉक्टर द्वारा लिखी गई दवाएं भी नहीं मिलती हैं, जिसके कारण मरीजों को बाहरी मैडीकल स्टोर से दवाएं लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

बेहतर इलाज की खानापूर्ति

पुराना हाऊसिंग बोर्ड कॉलोनी क्षेत्र में स्थित कर्मचारी राज्य बीमा निगम अस्पताल (ESI) में मरीजों को सुविधाओं के बजाय परेशानियां मिल रही हैं। केंद्र सरकार के अधीन होने के बावजूद यहां मरीजों का इलाज अब भी पुराने ढर्रे पर हो रहा है। मरीजों को केवल नीली-पीली दवाएं देकर बेहतर इलाज की खानापूर्ति की जा रही है। सही तरीके से इलाज न मिलने से परेशान मरीजों ने कहा कि यहां पर बहुत ज्यादा भीड़ होती है और यहां पर न तो ढंग से इलाज होता है और न ही जांच। भारी भीड़ होने के कारण एक तरफ तो घंटों तक कतार में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करना पड़ रहा है, उसमें भी डिस्पेंसरी में सभी दवाएं न मिलने के कारण मरीजों को बाहर से दवाएं खरीदने को मजबूर होना पड़ रहा है। ईएसआई डिस्पेंसरी में दवाओं की किल्लत है।

केवल रैफर करने तक सिमटी व्यवस्थाएं

वैसे तो अस्पताल में सभी तरह के टैस्ट और उपचार की व्यवस्था होनी चाहिए, लेकिन ईएसआई अस्पताल में स्थिति बिल्कुल उलट है। यहां आने वाले मरीजों को इलाज मिलना तो दूर, ब्लड टैस्ट करवाने के लिए माथापच्ची करनी पड़ती है। इलाज के लिए बैठे चिकित्सक मरीजों को केवल रैफर करने तक सीमित हैं। जिन मरीजों की पर्ची पर दवा लिखी जाती है, डिस्पेंसरी में पहुंचने पर उन्हें भी मायूसी ही मिलती है, क्योंकि यहां पर दवा होती ही नहीं। ऐसे में वे अस्पताल की व्यवस्थाओं को कोसते हुए घर की ओर चल देते हैं। कुछ मरीज तो साफ कहते हैं कि इससे अच्छा तो वे बाहर सरकारी या किसी निजी अस्पताल में इलाज करवा लेते। यहां आकर उन्होंने बेवजह अपना समय बर्बाद किया।

ईएसआई डिस्पेंसरी में नहीं है पूरी मेडिकल सुविधा

जिले के 30 हजार से अधिक कर्मचारियों के वेतन से हर माह ईएसआई की कटौती की जाती है। इन कर्मचारियों के इलाज के लिए शहर में तीन ईएसआई डिस्पेंसरी भी बनाई गई है। जिसमें डाक्टर के नाम पर मात्र एक-एक डाक्टर ही तैनात किए गए हैं। डिस्पेंसरी पर स्पेशिलिस्ट डॉक्टर तैनात न होने के कारण इन कर्मचारियों को ईएसआई डिस्पेंसरी में पूरी मेडिकल सुविधा नहीं मिल रही है। कार्ड होल्डर राजेश कुमार ने बताया कि सभी सरकारी प्राइवेट कंपनियां कर्मचारियों के वेतन से ईएसआई में इलाज के नाम पर पैसे काट रही है। मगर उनका कर्मचारियों को कोई फायदा नहीं हो रहा। प्राइवेट अस्पतालों को पैनल पर ले लिया है। वह पहले अपने मरीज देखते हैं उसके बाद ईएसआई वालों को, कर्मचारियों के साथ धोखा हो रहा है।

प्राथमिक इलाज के लिए नहीं है उचित प्रबंध 

मरीजों का आरोप है कि एक डिस्पेंसरी में हजारों मरीजों के इलाज के लिए मात्र एक ही डाक्टर तैनात है, लेकिन वह भी हर समय टूर पर ही होता है। डिस्पेंसरी में मौजूद फार्मासिस्ट ही आने वाले मरीजों को जरूरत अनुसार दवाइयां तो देता है। वह भी बिना चेकअप किए मरीजों से बीमारी पूछ कर दवाई देकर अपनी ड्यूटी पूरी कर लेते है। डिस्पेंसरी में अगर कोई गंभीर बीमारी से पीड़ित मरीज इलाज के लिए आ जाए तो यहां किसी भी डिस्पेंसरी में प्राथमिक इलाज के लिए कोई उचित प्रबंध नहीं है। विभाग की ओर से डिस्पेंसरी में प्राथमिक इलाज के लिए प्रबंध भी किए गए हैं लेकिन कर्मचारी मौके पर मौजूद ही नहीं होते, जिस कारण डाक्टर व कर्मचारी मरीजों को रैफर करना ही उचित समझते हैं।

निजी अस्पतालों में करते हैं रेफर

मरीजों के अनुसार ईएसआई डिस्पेंसरी से पहले सिविल अस्पताल रेफर किया जाता है। उसके बाद ईएसआई पैनल में शामिल निजी अस्पतालों में रेफर किया जाता है, वहां का स्टाफ प्रॉपर सहयोग नहीं करता। साथ ही टेस्ट आदि के पैसे उन्हें खुद देने पड़ते हैं। जबकि मरीजों का कहना है कि जब वे अपने वेतन से पैसे कटवा रहे हैं तो फिर वे भुगतान क्यों करें। इसके अलावा जब वे क्लेम में डालते हैं तो पूरे पैसे भी नहीं मिलते। क्योंकि प्राइवेट अस्पतालों में चेकअप के रेट ज्यादा हैं और ईएसआई वाले सरकारी रेट के हिसाब से बिल पास करते हैं, जिसमें काफी अंतर है। ईएसआई डिस्पेंसरी पर सिर्फ 1 डॉक्टर तैनात हैं। जो केवल बुखार, जुकाम खांसी जैसे छोटी बीमारियों की ही दवा दे सकते हैं। अन्य बीमारियां होने पर सिविल अस्पताल, प्राइवेट अस्पताल व पीजीआई जाना पड़ता हैं।

इलाज के लिए भी मारामारी

बहुत से मरीज ने तो यह तक कह दिया कि जब ईएसआई में बेहतर चिकित्सा सुविधा ही नहीं है तो हर महीने कंपनी किस बात के लिए सैलरी का एक हिस्सा काटती है। कभी-कभी तो छोटी बीमारियों के इलाज के लिए भी मारामारी हो जाती है। इसके अलावा बहुत से मरीज ने कहा कि जब इलाज न मिलने के कारण किसी उच्चाधिकारी से मिलने की कोशिश करते हैं तो गार्ड अधिकारी से मिलने भी नहीं देते हैं और जब मिलते हैं तो अधिकारी गलत तरीके से बात करते हैं।

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