घाव भरना एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें कई तरह की चुनौतियाँ आती हैं। हाल के वर्षों में, चिकित्सा विज्ञान में मछली की त्वचा से प्राप्त एसेलुलर फिश स्किन (AFS) ग्राफ्ट के उपयोग को एक नई दिशा मिली है। यह ग्राफ्ट मुख्य रूप से अटलांटिक कॉड या नाइल तिलापिया से प्राप्त होता है, और इसमें सूजन-रोधी और जीवाणुरोधी गुण होते हैं, जो जलने, डायबिटिक फुट अल्सर (DFU) और अन्य घावों के इलाज में सहायक साबित होते हैं।
घाव भरने के पारंपरिक तरीकों की तुलना में, मछली की त्वचा के ग्राफ्ट की प्रभावकारिता पर कई शोध किए जा रहे हैं। इन शोधों में विभिन्न चिकित्सा तकनीकों की तुलना में मछली की त्वचा के ग्राफ्ट को बेहतर पाया गया है। उदाहरण के तौर पर, एएफएस ने कोलेजन एल्गिनेट ड्रेसिंग, सिल्वर सल्फाडियाज़ीन क्रीम 1%, और एलोग्राफ्ट के मुकाबले बेहतर परिणाम दिए। मछली की त्वचा का ग्राफ्ट घावों के इलाज में तेज़ और प्रभावी है, इसके अलावा यह कम ड्रेसिंग परिवर्तन, कम दर्द और कम लागत के साथ आता है।
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ मेडिसिन से किए गए शोध में 10 अध्ययनों को शामिल किया गया, जिनमें मछली की त्वचा के ग्राफ्ट की प्रभावशीलता की तुलना अन्य तकनीकों से की गई थी। इन अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ कि मछली की त्वचा के ग्राफ्ट ने समग्र रूप से बेहतर घाव भरने की प्रक्रिया प्रदान की।
इस नई तकनीक ने घावों के इलाज के तरीके को बदल दिया है, और मछली की त्वचा के ग्राफ्ट का उपयोग अब एक प्रभावी और किफायती विकल्प के रूप में सामने आया है।