Saturday, October 11, 2025
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वैदिक परंपरा में वचन, नियम व शाप से बंधे हैं आठ ‘चिरंजीवी’, सबकी मृत्यु निश्चित है, लेकिन….

उज्जैन। वैदिक परंपरा में ‘चिरंजीवी’ उसे कहा जाता है जो अमर हो अर्थात जिसका कोई अंत न हो। वैदिक परंपरा में ऐसे आठ चिरंजीवियों का उल्लेख आता है। भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि जिस प्राणी ने जन्म लिया है, उसकी मृत्यु भी निश्चित है। लेकिन, पौराणिक गाथाओं में 8 ऐसे लोगों का ज़िक्र है, जो मृत्यु के बंधन से मुक्त हैं और कलियुग में भी जीवित हैं। इन्हें सप्त चिरंजीवी कहा जाता है। चिरंजीवी यानी चिर काल तक जीवित रहने वाला। सप्त चिरंजीवियों में पवनसुत हनुमान, भगवान परशुराम, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, व्यास, विभीषण और बलि शामिल हैं। इनके साथ एक और चिरंजीवी हैं, ऋषि मार्कण्डेय। ऋषि मार्कण्डेय अष्टम चिरंजीवी कहे जाते हैं।

गंगा ज्योतिष सेवा केंद्र, काशी के आचार्य राजेश का कहना है कि पद्म पुराण के एक श्लोक से इन सप्त चिरंजीवियों के अमर होने के बारे में बताता है। यह श्लोक है :

अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरंजीविनः॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित॥

इसका अर्थ हैं : अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और परशुराम सप्त चिरंजीवी हैं। इन सात के साथ मार्कण्डेय ऋषि, यानी अष्ट चिरंजीवी के नाम का जाप करने से व्यक्ति निरोगी रहता है और लंबी आयु को प्राप्त करता है। जो भी इन चिरंजीवियों के नाम का जाप करता है, वह शतायु हो जाता है। अर्थात्, उसकी उम्र 100 साल होती है। उसे इन्हीं की भांति पुरुषार्थ और भक्ति की शक्ति मिलती है।

1. महर्षि परशुराम: भगवान विष्णु के छठें अवतार हैं परशुराम। परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका थीं। राम ने भगवान शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था। शिवजी तपस्या से प्रसन्न हुए और राम को अपना अस्त्र फरसा दे दिया था। तब से राम परशुराम बन गये। इनका जन्म हिन्दी पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ था। इसलिए वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली तृतीया को अक्षय तृतीया कहा जाता है। भगवान परशुराम श्रीराम के पूर्व हुए थे, लेकिन वे चिरंजीवी होने के कारण श्रीराम के समय में भी रहे। परशुराम ने 21 बार पृथ्वी से समस्त धर्मविमुख क्षत्रिय राजाओं का अंत किया था।

2. राजा बलि: देवताओं पर चढ़ाई करने राजा बलि ने इंद्रलोक पर अधिकार कर लिया था। राजा बलि के घमंड का हनन करने के लिए भगवान ने ब्राह्मण का भेष धारण कर राजा बलि से तीन पग धरती दान में मांगी थी। भगवान ने अपना विराट रूप धारण कर दो पगों में तीनों लोक नाप दिए और तीसरा पग बलि के सर पर रखकर उसे पाताल लोक भेज दिया। शास्त्रों के अनुसार राजा बलि भक्त प्रहलाद के वंशज हैं। राजा बलि से श्रीहरि अतिप्रसन्न थे। इसी कारण से श्रीविष्णु जी राजा बलि के द्वारपाल भी बन गए थे।

3. हनुमान : अंजनी पुत्र हनुमान को भी अजर अमर रहने का वरदान मिला हुआ है। यह राम के काल में राम भगवान के परम भक्त रहे हैं।समहाभारत में प्रसंग हैं कि भीम उनकी पूंछ को मार्ग से हटाने के लिए कहते हैं तो हनुमानजी कहते हैं कि तुम ही हटा लो, लेकिन भीम अपनी पूरी ताकत लगाकर भी उनकी पूंछ नहीं हटा पाता है। सीताजी ने हनुमानजी को लंका की अशोक वाटिका में श्रीराम का संदेश सुनने के बाद आशीर्वाद दिया था कि वे अजर-अमर अविनाशी रहेंगे।

4. विभिषण : यह राक्षस राज रावण के छोटे भाई हैं। विभीषणजी श्रीराम के अनन्य भक्त हैं। जब रावण ने माता सीता हरण किया था, तब विभीषण ने रावण को श्रीराम से शत्रुता न करने के लिए बहुत समझाया था। इस बात पर रावण ने विभीषण को लंका से निकाल दिया था। विभीषण श्रीराम की सेवा में चले गए।

5. ऋषि व्यास : ऋषि व्यास इनको वेदवव्यास के नाम से भी जाना जाता है इन्होंने ही चारों वेद,18 पुराण, महाभारत, श्रीमद्भागवत् गीता और भविष्यपूरण की रचना की है। इन्हें वैराग्य का जीवन पसंद था, किन्तु माता के आग्रह पर इन्होंने विचित्रवीर्य की दोनों सन्तानहीन रानियों द्वारा नियोग के नियम से दो पुत्र उत्पन्न किए जो धृतराष्ट्र तथा पाण्डु कहलाए, इनमें तीसरे विदुर भी थे।

6. कृपाचार्य : कृपाचार्य अश्वथामा के मामा और कौरवों के कुलगुरु थे। शिकार खेलते हुए शांतनु को दो शिशु प्राप्त हुए। उन दोनों का नाम कृपी और कृप रखकर शांतनु ने उनका लालन-पालन किया। कृप और कृपि का जन्म महर्षि गौतम के पुत्र शरद्वान के वीर्य के सरकंडे पर गिरने के कारण हुआ था।

7.ऋषि मार्कण्डेय : भगवान शिव के परम भक्त थे ऋषि मार्कण्डेय। इन्होंने शिवजी को अपने तप से प्रसन्न किया और महामृत्युंजय मंत्र को सिद्धि किया था। इसलिए इन सातों के साथ-साथ ऋषि मार्कण्डेय का भी नित्य स्मरण करने के लिए कहा जाता है।

8 अश्वत्थामा : गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा श्री कृष्ण के शाप के कारण आज भी धरती लोक पर भटक रहे हैं। महाभारत के अनुसार अश्वस्थामा के माथे पर अमरमणि थी। लेकिन अर्जुन ने वह अमरमणि निकाल ली थी। ब्रह्मास्त्र चलाने के कारण कृष्ण ने उन्हें शाप दिया था कि कल्पांत तक तुम इस धरती पर जीवित रहोगे, इसीलिए अश्वत्थामा आठ चिरन्जीवियों में गिने जाते हैं। माना जाता है कि वे आज भी जीवित हैं तथा अपने कर्म के कारण भटक रहे हैं। मध्यप्रदेश के बुरहानपुर और हरियाणा में उनके दिखाई देने की लोक कथा आज भी प्रचलित हैं। कहा जाता है कि भगवान विष्णु जब कल्कि रूप में अवतार लेंगे, तो ये सभी चिरंजीवी दुनिया के सामने आ जाएंगे।

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