Saturday, November 23, 2024
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देवी-देवताओं की होली रंग पंचमी कल, द्वापर युग में ऐसे हुई थी शुरुआत, जानें शुभ मुहूर्त , पूजा विधि और कथा

30 मार्च को देवताओं की होली यानि रंग पंचमी का त्योहार मनाया जाएगा। मान्यताओं के अनुसार द्वापर युग में इस पर्व की शुरुआत हुई थी। इस पर्व का इतिहास क्या है किसने इसे शुरू किया, लेख में जानें विस्तार से।

नई दिल्ली। सनातन धर्म में देवी-देवताओं की होली यानि रंग पंचमी का विशेष महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को रंग पंचमी का पर्व मनाया जाता है। इसके साथ ही ब्रज मंडल में 40 दिवसीय होली पर्व का समापन भी हो जाता है। इस साल रंग पंचमी का पर्व 30 मार्च को मनाया जा रहा है।

हिंदू शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि इस दिन देवी-देवता पृथ्वी पर आकर होली खेलते हैं। इस साल रंग पंचमी पर काफी शुभ योगों का भी निर्माण हो रहा है। इस दिन रंग खेलने से देवी-देवता अति प्रसन्न होते हैं और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। देवताओं को समर्पित होने के कारण इसे देव पंचमी, श्री पंचमी भी कहा जाता है। आइए जानते हैं रंग पंचमी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और मंत्र…

रंग पंचमी को होली का अंतिम पड़ाव माना जाता है। इस दिन रंगोत्सव के द्वारा पंचतत्वों को जागृत और सक्रिय किया जाता है। इसके साथ ही बुरे कर्म और पापों का नष्ट हो जाता है। हला में सकारात्मक बढ़ जाती है।

रंग पंचमी 2024 शुभ मुहूर्त

पंचमी तिथि आरंभ- 29 मार्च को रात 8 बजकर 20 मिनट से शुरू
पंचमी तिथि समाप्त- 30 मार्च को रात 9 बजक 13 मिनट पर

रंग पंचमी 2024 शुभ योग

हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल रंग पंचमी पर शुभ योग बन रहे हैं। इस दिन शिव वास योग के साथ वि और सिद्धि योग बन रहा है।

रंग पंचमी 2024 पूजा विधि

  • रंग पंचमी के दिन भगवान श्री कृष्ण-राधारानी के साथ मां लक्ष्मी की पूजा करना शुभ माना जाता है। रंग पंचमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें। इसके बाद साफ-सुथरे वस्त्र धारण कर लें। अब पूजा आरंभ करें।
  • सबसे पहले एक लकड़ी की चौकी में पीले रंग का वस्त्र बिछाएं। इसमें श्री राधा कृष्ण की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। इसके साथ ही बगल में एक कलश स्थापना करें। इस कलश में स्वास्तिक बनाने बाद जल भर लें और इसे ऊपर से अनाज भरकर बंद कर लें।
  • श्री राधा कृष्ण को पंचामृत, गंगाजल से स्नान कराएं। इसके बाद नए वस्त्र पहनाएं और फूल, माला चढ़ना के साथ श्रृंगार करें। इसके बाद गुलाल, पीला चंदन, अक्षत चढ़ाने के साथ भोग लगाएं। फिर घी का दीपक और धूप जलाने के साथ मंत्र और चालीसा का पाठ करें। अंत में श्री राधा कृष्ण की आरती करते भूल चूक के लिए माफी मांग लें।

रंग पंचमी से जुड़ी पौराणिक कथा

द्वापर युग में भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार लिया था। माना जाता है कि, भगवान कृष्ण ने ही रंग पंचमी की शुरुआत की थी। पौराणिक ग्रंथों में वर्णित है कि, चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को भगवान कृष्ण ने राधा जी के साथ होली खेली थी। भगवान कृष्ण और राधा जी को होली के रंगों में रंगा देखकर गोपियां भी शामिल हो गईं। राधा-कृष्ण की होली से धरती पर एक अद्भुत छटा बिखरने लगी, जिसे देखकर देवी-देवता भी मंत्रमुग्ध हो गए।

देवी-देवता भी राधा-कृष्ण के साथ होली खेलना चाहते थे और इसीलिए वो भी गोपी और ग्वालों का रूप धारण करके राधा-कृष्ण की टोली में शामिल हो गए। यानि धरती पर सारे देवी-देवताओं ने राधा-कृष्ण के साथ होली मनाई। यही वजह है कि रंग पंचमी को देवताओं की होली कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार, आज भी रंग-पंचमी के दिन देवी-देवता धरती पर राधा-कृष्ण के साथ होली मनाने पहुंचते हैं।

यह है रंगपंचमी की दूसरी वजह

रंग पंचमी को लेकर कई कथाएं प्रचलित है, जिसमें श्रीकृष्ण-राधारानी के अलावा कामदेव की प्रचलित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या भंग कर दी थी, जिससे क्रोधित होकर उन्होंने कामदेव को भस्म कर दिया था। होलाष्टरक के दिन कामदेव के भस्म होने से उनकी पत्नी रति सहित अन्य देवी-देवता उदास हो गए थे और उन्होंने शिव जी से प्रार्थना की। फिर उन्होंने पुन: कामदेव को जीवित कर दिया था। ऐसे में देवी-देवता काफी हर्षित हो गए और उन्होंने रंगोत्सव मनाया था। जिस दिन ये घटना घटी उस दिन चैत्र मास की पंचमी तिथि थी।

इन जगहों पर खूब मनाते हैं रंग पंचमी?

रंग पंचमी का पर्व देशभर के कुछ जगहों पर धूमधाम से मनाते हैं। मथुरा-वृंदावन के अलावा रंग पंचमी का पर्व राजस्थान के जैसलमेर, मध्य प्रदेश के इंदौर, महाराष्ट्र् के साथ उत्तर प्रदेश में कुछ जगहों पर धूमधाम से मनाते हैं।

रंग पंचमी पर ये कार्य करना शुभ

  • रंग पंचमी को लेकर कहा जाता है कि इस दिन हवा में गुलाल उड़ाने से वातावरण की नकारात्मकता दूर होती है। साथ ही समाज में सौहार्द बना रहता है।
  • इस दिन देवी-देवताओं खासकर भगवान कृष्ण की पूजा करने से मनोवांछित फल प्राप्त हो सकते हैं।
  • यह दिन आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी अतिउत्तम कहा गया है, साधकों को इस दिन अपने इष्ट की साधन अवश्य करनी चाहिए।
  • इस दिन किये गये ध्यान से आपको मानसिक शांति और आध्यात्मिक बल प्राप्त होता है।
  • जो लोग आध्यात्मिक क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं उनको कुछ ऐसे अनुभव इस दिन हो सकते हैं जिससे उनकी आध्यात्मिक यात्रा आसान हो सकती है।
  • मान्यताओं के अनुसार, क्योंकि इस दिन देवी-देवता धरती पर आते हैं इसलिए उनकी आराधना करके भक्तों को शुभ फलों की प्राप्ति शीघ्र हो सकती है।

डिसक्लेमर- इस लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों जैसे ज्योतिषियों, पंचांग, मान्यताओं या फिर धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है। इसके सही और सिद्ध होने की प्रामाणिकता नहीं दे सकते हैं। इसके किसी भी तरह के उपयोग करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।

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