Holi History: होली का नाम आते ही हमें रंग दिखाई देने लगते हैं, मौज-मस्ती और पकवान। लेकिन होली मनाने की शुरुआत कब हुई? यूं तो होली भारत के सबसे प्राचीन त्योहारों में से एक है। इस दिन लोग मिलजुल कर रंग खेलते हैं और एक दूसरे को रंग-गुलाल लगाते हैं। पानी के गुब्बारे और पिचकारी से भी होली खेलने का चलन है। इस साल होलिका दहन 13 मार्च और रंगवाली होली 14 मार्च 2025 को होगी।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस संसार में सबसे पहले होली किसने और कहां खेली थी? अगर नहीं, तो आज हम आपको बताएंगे की सबसे पहले होली किसने खेली थी। इये जानते हैं कितना पुराना है होली का इतिहास और सबसे पहले किसने खेली थी रंगवाली होली।
संसार की पहली होली
रंगों वाली होली (Holi) धरती से पहले देवलोक में खेली गई थी। हरिहर पुराण की कथा कहती है कि संसार की पहली होली देवाधिदेव महादेव ने खेली थी जिसमें प्रेम के देवता कामदेव और उनकी पत्नी रति थीं। इस कहानी के अनुसार, शिवजी जब कैलाश पर अपनी समाधि में लीन थे।
रति और कामदेव के नृत्य से भगवान शिव की समाधि भंग हुई तो भगवान शंकर ने अपनी क्रोध की अग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया। रति ने प्रायश्चित में विलाप किया तो अति दयालु भगवान शंकर ने कामदेव को पुन: जीवित कर दिया। इससे प्रसन्न होकर रति और कामदेव ने ब्रजमंडल में ब्रह्म भोज का आयोजन किया जिसमें सभी देवी देवताओं ने हिस्सेदारी की। रति ने चंदन की टीका लगाकर खुशी मनाई थी। कहते हैं कि ये फाल्गुन पूर्णिका का दिन था।
होली (Holi) से जुड़ी एक अन्य पौराणिक कथा हरिहर पुराण से जुड़ी है। इसके अनुसार ब्रह्म भोज में आनंद के मारे भगवान शिव ने डमरू और भगवान विष्णु ने बांसुरी बजाई। माता पार्वती ने वीणा की स्वर लहरियां छेड़ी तो वहीं देवी सरस्वती ने बसंत के रागों में गीत गाए। मान्यता है कि तभी से फाल्गुन पूर्णिमा के दिन को गीत, संगीत और रंगों के साथ होली का आनंद उत्सव मनाया जाने लगा।
क्या है होली का विधान?
रंग या अबीर के खेलने के पूर्व उसको भगवान को जरूर समर्पित कर देना चाहिए। अपनी-अपनी इच्छाओं के अनुसार, अगर ऐसा कर सकें तो सर्वोत्तम होगा। होलिका दहन से लाए गई राख (भस्म) से शिवलिंग का अभिषेक करना भी शुभ फल प्रदान करता है। इसके बाद आप किसी भी पसंदीदा रंग के साथ होली खेल सकते हैं। इससे लोगों के बीच प्रेम, स्नेह बढ़ता है।
Note: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है।