हाल ही मैं नारायण मूर्ति ने युवाओं को सलाह दी थी की उन्हें बिना छुट्टी लिए हफ्ते में 70 घंटे काम करना चाहिए तो दूसरी तरफ लार्सन एंड टुब्रो के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यन ने कहा था कि युवाओं को 90 घंटे काम करना चाहिए जिसके बाद देश-विदेशे में इन बयानों को लेकर काफी हंगामा हुआ था।
लेकिन अब हम आपको एक ऐसे शख्स के बारे में बताएंगे जो इनकी उम्मीदों पर बिल्कुल खरा उतरते हैं। ये वो शख्स हैं जिन्होंने पिछले 18 वर्षों से एक भी दिन छुट्टी नहीं ली। और तो और खुद के बेटे की शादी में भी इन्होंने छुट्टी नहीं ली थी। इनका नाम है डॉ. भरत बाजपेयी।
इंदौर के गोविंद वल्लभ पंत जिला अस्पताल के पोस्टमार्टम विभाग में तैनात 64 वर्षीय मेडिकल ऑफिसर डॉ. भरत बाजपेयी अपने समर्पण और कार्यशैली के लिए जाने जाते हैं। उनके केबिन के बाहर लिखी पंक्तियां ‘यहां मृत्यु जीवितों की मदद के लिए आती है और क्या आप परिणामों के डर से सत्य नहीं बोलेंगे?’ जो दिखाता है कि वे अपने काम को कैसे देखते हैं।
बेटे के शादी में भी किए दो पोस्टमार्टम
दुनिया जब महामारी के दौर से गुजर रही थी यानी कोरोना के समय में तब भी इन्होंने एक भी दिन छुट्टी नहीं ली थी। बता दें कि डॉ. बाजपेयी बीते 18 वर्षों में 15,000 से अधिक पोस्टमार्टम कर चुके हैं। खास बात यह है कि उन्होंने अपने बेटे की शादी में भी अवकाश नहीं लिया और उस दिन 2 पोस्टमार्टम भी किए।
केवल 2019 में ब्रेन स्ट्रोक के कारण उन्हें एक महीने की मेडिकल लीव लेनी पड़ी थी, लेकिन उन्होंने एक महीने के अदंर स्वस्थ होकर फिर से कार्यभार संभाल लिया। उनके इस समर्पण के चलते उनका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज हो चुका है।
लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज
2006 में जब एक अस्पताल में शवों की संख्या बढ़ने लगी, तब धार रोड स्थित गोविंद वल्लभ पंत जिला अस्पताल में पोस्टमार्टम सुविधा शुरू की गई और इसकी जिम्मेदारी डॉ. भरत बाजपेयी को सौंपी गई। तब से लेकर अब तक उन्होंने बिना किसी स्वैच्छिक अवकाश के काम किया।
इस समर्पण के कारण उन्हें 2011 में लगातार 5 साल तक बिना छुट्टी लिए काम करने पर लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में स्थान मिला। इसके बाद 8 वर्षों तक लगातार काम करने पर उन्हें दोबारा इस उपलब्धि के लिए सम्मानित किया गया।