Saturday, November 1, 2025
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चाय की रेहड़ी लगाने वाले की बेटी ने एशियन गेम्स में जीता कांस्य पदक

चाय की रेहड़ी लगाने वाले की बेटी खुशी सैनी (15) ने बहरीन में चल रहे एशियन गेम्स के कुराश मुकाबले में कांस्य पदक जीतकर न केवल अपने जिले कैथल का बल्कि पूरे देश का नाम रोशन किया है। कांस्य पदक जीतकर कैथल लौटने पर डीसी प्रीति व बीजेपी जिला अध्यक्ष ज्योति सैनी ने खुशी को मेडल पहनाकर स्वागत किया और उनकी इस असाधारण उपलब्धि के लिए बधाई दी। साथ ही उज्ज्वल भविष्य की कामना की। उनके साथ एसडीएम अजय सिंह भी मौजूद थे।

डीसी प्रीति ने कहा कि खुशी की यह जीत कैथल के उन सभी बच्चों के लिए प्रेरणास्रोत है, जो विपरीत परिस्थितियों में भी बड़े सपने देखने का हौसला रखते हैं। उन्होंने खुशी को भविष्य में और कड़ी मेहनत करने और देश के लिए स्वर्ण पदक जीतने के लिए प्रोत्साहित किया।

यह खुशी की लगातार दूसरी बड़ी सफलता है। इस कांस्य पदक से ठीक पहले, उन्होंने पिछले महीने दक्षिण कोरिया में आयोजित हुई एशियन चैंपियनशिप के कुराश मुकाबले में स्वर्ण पदक जीतकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया था। डीसी प्रीति ने खुशी के पिता को बधाई देते कहा कि हम सभी उनके आभारी हैं, जिन्होंने अपनी बेटी की सफलता के लिए इतनी कड़ी मेहनत की। यह सभी के लिए प्रेरणा की बात है। उन्होंने खुशी को आशीर्वाद देते हुए भविष्य में भी इसी लग्न एवं मेहनत से सफलता हासिल करने की शुभकामनाएं दीं।

बता दें कि खुशी के पिता सतीश कुमार सैनी कैथल में पुराने हिंद सिनेमा के पास एक चाय की रेहड़ी लगाते हैं। सीमित संसाधनों के बावजूद उन्होंने अपनी बेटी के सपनों को उड़ान देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। खुशी के पिता प्रतिदिन सुबह-शाम उन्हें प्रशिक्षण के लिए स्टेडियम छोड़कर जाते हैं और साथ में अपनी आजीविका भी चलाते हैं। सीमित आय के बावजूद अपनी बेटी के खेल के प्रति जुनून को हमेशा प्रोत्साहित किया।

बीजेपी जिला अध्यक्ष ज्योति सैनी ने खिलाड़ी खुशी व उनके पिता को बधाई देते हुए कहा कि उनकी यह उपलब्धि दर्शाती है कि प्रतिभा और कड़ी मेहनत किसी भी आर्थिक बाधा से बड़ी होती है। एसडीएम अजय सिंह ने भी खुशी व उनके परिजनों सहित कोच को इस सफलता पर बधाई दी।

खुशी के कोच जोगिंद्र व संदीप कुमार ने बताया कि खुशी पिछले दो सालों से कुराश खेल से जुड़ी हैं। इस खेल से पहले, वह कुश्ती खेलती थीं। दो वर्षों के भीतर ही कुराश में उनकी यह उपलब्धि उनके समर्पण, उसके अभिभावकों के त्याग और कुशल मार्गदर्शन का परिणाम है।

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