Thursday, November 21, 2024
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विधानसभा शीतकालीन सत्र से पहले नाराज अनिल विज बने सरकार के लिए बड़ी चुनौती

बता दें करीब दो महीने पहले सीएमओ के एक अधिकारी ने स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों की बैठक बुलाई। विज को विश्वास में लिए बिना बुलाई गई बैठक में सीएमओ के अधिकारी ने विभाग की समीक्षा की और कई तरह के निर्देश दिए।

चंडीगढ़। विधानसभा शीतकालीन सत्र से पहले अनिल विज की नाराजगी सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है। जानकरी के अनुसार इस बार अनिल विज विधानसभा सत्र में विपक्ष के स्वास्थ्य से जुड़े सवालों का जवाब नहीं देंगे। गृह मंत्री सदन में ही मुख्यमंत्री कार्यालय के उस अधिकारी का नाम जवाब देने के लिए ले सकते हैं, जिससे उन्हें नाराजगी है। अनिल विज को इस बात पर कड़ी आपत्ति है कि उनकी जानकारी और अनुमति के बिना मुख्यमंत्री कार्यालय के एक अधिकारी ने स्वास्थ्य विभाग की मीटिंग बुलाई और कहा कि स्वास्थ्य विभाग में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। इसी के चलते विज ने स्वास्थ्य विभाग का काम छोड़ा हुआ है। 50 से अधिक दिनों से उन्होंने विभाग की एक भी फाइल को हाथ तक नहीं लगाया है।

आपको बता दें कि इस बार विधानसभा के शीतकालीन सत्र का आगाज 15 दिसंबर से शुरू होगा। ये सत्र तीन दिवसीय होगा। अब कयास ये लगाए जा रहे हैं कि विधानसभा के सत्रों में सबसे अधिक सवाल भी स्वास्थ्य विभाग से जुड़े होते हैं। इस बार भी विपक्षी दलों द्वारा विज के महकमे से जुड़े सवाल उठाए जाएंगे। इतना ही नहीं, विज और सीएमओ के बीच चल रहे गतिरोध पर भी विपक्षी दल सरकार को घेरने की कोशिश करेंगे। हालांकि, गतिरोध को खत्म करने के लिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल की स्वास्थ्य मंत्री के साथ बैठक हो चुकी है, लेकिन विज ने अभी काम शुरू नहीं किया है।

दरअसल, विज ने सीएमओ के अधिकारी के अलावा विभाग के एक अन्य आला अधिकारी की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने सीएम के सामने कुछ शर्तें एवं मांगें रखी हैं। यानी गतिरोध को खत्म करने की गेंद अब मुख्यमंत्री के पाले में है। मुख्यमंत्री की ओर से सकारात्मक संदेश और इशारा मिलने के बाद विज फिर से स्वास्थ्य विभाग को संभाल सकते हैं। अगर सत्र के दौरान तक भी यह गतिरोध और विवाद बना रहा तो इस मुद्दे पर सदन में सरकार की फजीहत भी हो सकती है। जिस तरह के कड़े तेवर और रुख विज अपनाए हुए हैं, उससे लगता नहीं कि बिना बातचीत सिरे चढ़े वे विधानसभा के शीतकालीन सत्र में स्वास्थ्य विभाग से जुड़े सवालों के जवाब देंगे। हालांकि गृह विभाग से जुड़े सवालों को लेकर वे तैयारियों में जुट चुके हैं।

पुलिस से जुड़े किन-किन मुद्दों पर विपक्ष सरकार को घेर सकता है, इसका अंदाजा उन्हें है। ऐसे में पहले से ही जवाब की तैयारी की जा रही है। लेकिन स्वास्थ्य विभाग की फाइलों को उन्होंने पूरी तरह से पेंडिंग किया हुआ है। बता दें करीब दो महीने पहले सीएमओ के एक अधिकारी ने स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों की बैठक बुलाई। विज को विश्वास में लिए बिना बुलाई गई बैठक में सीएमओ के अधिकारी ने विभाग की समीक्षा की और कई तरह के निर्देश दिए। बैठक में विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉ़ जी अनुपमा, स्वास्थ्य सेवाएं हरियाणा की महानिदेशक सहित कई अधिकारी मौजूद रहे। बैठक के बाद से विज ने स्वास्थ्य विभाग का काम छोड़ा हुआ है।

भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार के अलावा दूसरे दलों के विधायकों को भी विज खाली हाथ लौटा रहे हैं। कई विधायक विज के पास स्वास्थ्य विभाग से जुड़ी समस्याएं और काम लेकर पहुंचते हैं। विज का एक ही जवाब होता है कि स्वास्थ्य विभाग को वे नहीं देख रहे। सीएमओ के अधिकारी के पास ही जाकर काम करवाएं। पिछले दिनों आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में सीएम मनोहर लाल ने इस तरह के संकेत दिए थे कि इस विवाद का जल्द हल निकल जाएगा। ऐसे में माना जा रहा है कि एक बार फिर बातचीत के जरिये गतिरोध को खत्म किया जा सकता है।

इस विषय पर विधायक अभय सिंह चौटाला ने कहा, ‘मैं शीतकालीन सत्र में सरकार और स्वास्थ्य मंत्री से पूछूंगा कि स्वास्थ्य विभाग का कामकाज चौपट क्यों है। मुझे लगता है कि स्वास्थ्य विभाग से जुड़ा कोई सवाल सदन में आएगा तो अनिल विज उसका जवाब नहीं देंगे, क्योंकि उन्होंने स्वास्थ्य विभाग का काम छोड़ा हुआ है।’ अभय ने कहा, ‘अगर अनिल विज की बात नहीं मानी जा रही है तो उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देकर तुरंत सरकार से अलग हो जाना चाहिए। कांग्रेस को भी इस मुद्दे को विधानसभा में उठाना चाहिए।’

अब सवाल ये पैदा होता है कि गृह मंत्री अनिल विज मुख्यमंत्री कार्यालय के इस अधिकारी के विरुद्ध क्या कार्रवाई चाहते हैं, यह तो उन्होंने कभी सार्वजनिक नहीं किया, लेकिन इतना जरूर कहा कि वे सब कुछ मुख्यमंत्री को बता चुके हैं। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग से जुड़ी समस्याओं को लेकर विधायक कई सवाल लगाएंगे। कहीं डाक्टर नहीं हैं तो कहीं स्वास्थ्य अमले की कमी है। कहीं स्वास्थ्य उपकरण नहीं हैं तो कहीं दवाइयां नहीं हैं।कहीं लैब उपकरणों की कमी बनी हुई है तो कहीं मशीनों को चलाने वाला स्टाफ नहीं है। पिछले नौ सालों में करीब 2900 डॉक्टरों की भर्ती हुई है, लेकिन अभी भी डॉक्टरों की भारी कमी राज्य में बनी हुई है।

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