डॉ अनुज नरवाल रोहतकी “म्हारी विधानसभा” सीरीज की अपनी दूसरी किस्त में हम बात करेंगे उस विधानसभा की जिसमें पिछले 32 बरसों से महिलायें ही विधायक रही हैं और 18 बरसों से लगातर कांग्रेस का कब्ज़ा रहा है. इस विधानसभा सीट का नाम है “कलानौर”. साल 1977 के विधानसभा चुनाव से अब तक यह विधानसभा सीट आरक्षित है. इसे अर्ध-शहरी विधानसभा सीटों में गिना जाता है. देश के बंटवारे के बाद विस्थापित हुए पंजाबी समुदाय की खासी मौजूदगी इस क्षेत्र में है.
आजाद भारत के पहले चुनाव 1952 में हुए थे. उस वक्त से ही यह सीट कायम है. इस सीट पर सबसे ज्यादा बार जीतने का रिकॉर्ड करतारी देवी के नाम है. वे यहाँ से चार दफा चुनाव जीतीं और तीन दफा हारीं. अगर आगामी चुनाव (2024) में शकुंतला खटक को कांग्रेस यहाँ से मैदान में उतारती है और वह जीत जाती हैं तो वह भी करतारी देवी के रिकॉर्ड की बराबरी कर लेगी. हालांकि शकुंतला खटक के नाम इस सीट पर जीत की हेट्रिक लगाने का रिकॉर्ड भी है.
पहले विधानसभा चुनाव (1952) में कलानौर से चौधरी बदलूराम और 1957 में नान्हूराम विधायक चुने गये. चौ. बदलूराम भी भूपेंदर सिंह हुड्डा के पैतृक गाँव सांघी के ही थे. वे इससे पहले साल 1946 में भी रोहतक सेंट्रल विधान सभा क्षेत्र से विधायक चुने गए थे. साल 1962 में भूपेंदर सिंह हुड्डा के पिता चौधरी रणबीर सिंह यहाँ से विधायक बने और पंजाब सरकार में मंत्री भी. पंजाब सूबे से अलग होने के बाद हरियाणा के पहले चुनाव (1967) में कलानौर से जनसंघ के नसीब सिंह ने बाजी मारी. रोहतक के हाल के विधायक भारत भूषण बत्रा के पिता सतराम दास बत्रा 1968 और 1972 में यहाँ से विधायक चुने गए. बत्रा पहली बार जनसंघ से और दूसरी बार कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में विधायक बने थे. 1977 में यह सीट आरक्षित हो गई और बत्रा चुनाव लड़ने से महरूम रह गए. साल 1982 में वे रोहतक शिफ्ट हो गए लेकिन हार गए. लेकिन 27 बरस बाद उनके बेटे बीबी बत्रा ने रोहतक में विजय पताका फहरायी.
आरक्षित होने के बाद कलानौर विधानसभा सीट दलित सियासत का मरकज़ बन गई. आरक्षित होने के बाद पहले ही चुनाव में कांग्रेस की उम्मीदवार करतार देवी को पराजित कर जनता पार्टी के जय नारायण खुन्डिया यहाँ से विधायक चुने गये. लेकिन अगले ही चुनाव (1982) में जय नारायण खुन्डिया से हार का बदला लेते हुए करतार देवी ने चुनाव जीत लिया. इसी क्रम में आगामी चुनाव 1987 में हुए तो एक बार फिर जय नारायण खुन्डिया ने अपना जलवा दिखाया और करतार देवी को विधानसभा का दरवाजा देखने नहीं दिया. साल 1991 के चुनावी मुकाबले में करतार देवी ने जनता पार्टी के हरदूल सिंह को और 1996 में जयनारायण को पराजित किया लेकिन वे साल 2000 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की सरिता नारायण से हार गई.
2005 में करतार देवी ने इनेलो के मेवा सिंह को पराजित किया और हरियाणा सूबे की स्वास्थ्य मंत्री भी बनी. यह करतार देवी का अंतिम चुनाव था. अगस्त 2009 में मंत्री रहते हुए उनका निधन हो गया. 2009 में कांग्रेस ने करतारी देवी के विकल्प के तौर पर शकुंतला खटक को मैदान में उतारा. खटक ने इनेलो के मेवाराम को पराजित किया. 2014 और 2019 में शकुंतला खटक ने बीजेपी के रामावतार बाल्मीकि को हराकर जीत की हेट्रिक लगाई.