Viral News : मृत्यु एक ऐसी सच्चाई है जिसे कोई टाल नहीं सकता। जीवन के अंत के बाद विभिन्न परंपराओं का पालन किया जाता है, खासकर जब किसी को अंतिम विदाई दी जाती है। हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद शव को बांस की अर्थी पर क्यों लिटाया जाता है, यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर जानने की जिज्ञासा कई लोगों के मन में होती है। आइए इस परंपरा के पीछे छिपे धार्मिक और व्यावहारिक कारणों को समझते हैं।
मृत्यु के बाद की प्रमुख परंपराएं
मृत्यु के बाद हिंदू धर्म में कुछ खास परंपराओं का पालन अनिवार्य माना जाता है। जैसे, मृत व्यक्ति के मुंह में तुलसी के पत्ते और गंगाजल डालना, शव को घर के बाहर लिटाना और फिर उसे श्मशान घाट तक ले जाना। इस दौरान शव को बांस की बनी अर्थी पर लिटाया जाता है। लेकिन, सवाल उठता है कि अर्थी के लिए सिर्फ बांस का ही उपयोग क्यों किया जाता है?
बांस की अर्थी का धार्मिक महत्व
वंसत जी महाराज के अनुसार, सनातन धर्म में बांस का खास स्थान है। जब किसी की मृत्यु होती है, तो बांस की सीढ़ी का निर्माण किया जाता है। अगर घर में बांस उपलब्ध नहीं होता, तो इसे खरीदकर लाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, जहां बांस होता है, वहां मृत्यु से जुड़ी आत्माएं वास कर सकती हैं। इसीलिए शव को बांस की बनी अर्थी पर लिटाने का प्रचलन है।
व्यावहारिक दृष्टिकोण से बांस का महत्व
कुछ लोगों का मानना है कि बांस हल्का होता है और आसानी से उपलब्ध भी। पुराने समय में बांस हर जगह पाया जाता था, इसलिए यह शव को श्मशान घाट तक ले जाने के लिए उपयुक्त माना गया। धीरे-धीरे यह एक परंपरा बन गई, जिसे आज भी लोग निभा रहे हैं।
अंतिम संस्कार से जुड़ी अन्य परंपराएं
हिंदू धर्म में शव को जलाने की प्रथा है। इसके बाद अस्थियों को गंगा में प्रवाहित किया जाता है। कई क्षेत्रों में शव को नदी में प्रवाहित करने की परंपरा भी है। मृत्यु के 13 दिन बाद तेरहवीं का आयोजन होता है। ऐसी मान्यता है कि तेरहवीं के भोज में जो भोजन परोसा जाता है, वह आत्मा को शांति और शक्ति प्रदान करता है।
इस प्रकार, बांस की अर्थी का उपयोग धार्मिक और व्यावहारिक दोनों दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है। यह परंपरा न केवल सनातन धर्म की गहराई को दर्शाती है, बल्कि जीवन और मृत्यु के बीच गहरे संबंधों को भी प्रकट करती है।