सरकार अवैध डिजिटल ऋण देने वाले ऐप्स के प्रसार को रोकने के लिए एक व्यापक विधेयक लाने की योजना बना रही है। वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग द्वारा तैयार किए गए इस मसौदा विधेयक में अवैध ऋण गतिविधियों में शामिल व्यक्तियों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान है। प्रस्ताव के अनुसार, इन गतिविधियों में लिप्त पाए जाने वालों को 10 साल तक की सजा और 1 करोड़ रुपये तक के जुर्माने का सामना करना पड़ सकता है।
विधेयक में यह भी प्रस्तावित किया गया है कि देश में संचालित सभी अधिकृत ऋणदाताओं का एक डेटाबेस तैयार किया जाए, जिसे जनता के लिए उपलब्ध कराया जाएगा। यह डेटाबेस उपभोक्ताओं को यह पता लगाने में मदद करेगा कि कौन से ऋणदाता वैध हैं। यदि कोई ऋणदाता प्राधिकरण से मांगी गई जानकारी प्रदान करने में विफल रहता है, तो उसे 5 लाख रुपये तक का जुर्माना भुगतना होगा। इसके अलावा, विधेयक में यह भी कहा गया है कि अवैध ऋण देने में संलिप्त व्यक्तियों के खिलाफ बिना वारंट के छापेमारी की जा सकेगी।
नांगिया एंडरसन इंडिया के निदेशक-नियामक मयंक अरोड़ा के अनुसार, यह प्रस्तावित विधेयक एक मजबूत कदम है, क्योंकि इसमें अपराधी और सह-अपराधियों दोनों के लिए सजा का प्रावधान है। अरोड़ा ने कहा कि डिजिटल ऋण क्षेत्र में सबसे बड़ा समस्या यह है कि उपभोक्ताओं को वास्तविक ऋणदाताओं का पता नहीं चलता, जिससे अवैध संस्थाएं अपना काम चलाती हैं।
यह विधेयक उन अवैध ऋण ऐप्स के खिलाफ है जो अत्यधिक ब्याज दरों पर छोटे ऋण प्रदान करते हैं और उधारकर्ताओं से जबरन वसूली करते हैं, जिससे कई बार उधारकर्ता मानसिक तनाव का शिकार हो जाते हैं।