Shardiya Navratri 2024 : नवरात्र के सातवें दिन भक्तों ने घरों और मंदिरों में मां कालरात्रि की पूजा की। पूजा के दौरान सुख समृद्धि के लिए मन्नते मांगी गईं।
वहीं रोहतक के माता दरवाजा स्थित संकट मोचन मंदिर में ब्रह्मलीन गुरुमां गायत्री जी के सानिध्य में शारदीय नवरात्र महोत्सव में बुधवार को मां जगदंबे के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना श्रद्धा और उत्साह से की। भक्तों ने जय माता दी, बोल शेरावाली मां की जय का गुणगान करते हुए अखंड ज्योत के दर्शन किए और सुख समृद्धि, सुख शांति और अरदास करके मनोकामनाएं मांगी। कार्यक्रम में दुर्गा स्तुति पाठ, अखंड ज्योत के दर्शन, गद्दीनशीन साध्वी मानेश्वरी जी ने प्रवचन और प्रसाद वितरित हुआ। यह जानकारी सचिव गुलशन भाटिया ने दी।
इनकी पूजा से दानव, भूत-प्रेत, राक्षस, दैत्य डरकर भागते हैं : साध्वी
गद्दीनशीन साध्वी मानेश्वरी देवी ने प्रवचन देते हुए कहा कि मां दुर्गा के कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत भयानक है, मगर वह सदैव अपने भक्तों को शुभ फल प्रदान करती हैं। इनका स्मरण करने से दानव, भूत-प्रेत, राक्षस, दैत्य आदि डरकर भाग जाते हैं। कालरात्रि रूप का अवतार असुरों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए हुआ था। ये दुष्टों का नाश करने करके ग्रह बाधाओं को भी दूर करती हैं। इनकी पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। उन्होंने कहा कि मां कालरात्रि का रंग कृष्ण वर्ण का है। काले रंग के कारण उनको कालरात्रि कहा गया है। चार भुजाओं वाली मां कालरात्रि दोनों बाएं हाथों में क्रमश: कटार और लोहे का कांटा धारण करती हैं।
भगवान प्रेम के भूखें हैं, उनको प्रेम दीजिए : साध्वी मानेश्वरी देवी
उन्होंने कहा कि आप जिन भगवान की पूजा करते हैं, वे भगवान प्रेम के भूखे हैं, उनको प्रेम दीजिए। प्रेम देने से वे आपसे बातें करेंगे, आपके हाथ से अर्पित किया हुआ प्रसाद-भोजन ग्रहण करेंगे। आप पूजा के कमरे में बैठकर जप, तप, पूजा, भजन, र्कीतन आदि जो भी करें, उसका उद्देश्य रखें- भगवान को प्रसन्नता देना। सब कुछ भगवान की प्रसन्नता के लिए करें। इस जगत के मालिक आप हैं, आपने जगत की केवल तीन चीजें मुझ सौंपी है- शरीर, परिवारजन व सामान-सम्पति। इन तीनों के मालिक भी आप हैं।
उन्होंने कहा कि मनुष्य सच्चे हृदय से परमात्मा की शरण में चला जाए तो उसके सारे दुख दूर हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि गुरु परमात्मा और मनुष्य के बीच में एक कड़ी की तरह है और संसार रूपी भवसागर को गुरू नाम से ही पार किया जा सकता है।