कोटा, जो कि विद्यार्थियों का प्रमुख केंद्र माना जाता है, में साल 2025 के पहले 22 दिनों में छह आत्महत्याएं हो चुकी हैं। इनमें से पांच विद्यार्थी JEE की तैयारी कर रहे थे, जबकि एक छात्रा NEET की तैयारी कर रही थी। आत्महत्या के ये मामले फांसी लगाकर किए गए थे, और इस दौरान एंटी-हैंगिंग डिवाइस भी विफल साबित हुआ। इन घटनाओं से यह सवाल उठता है कि क्या एंटी-हैंगिंग डिवाइस सुसाइड रोकने में प्रभावी है, और कोचिंग सेंटर्स में ऐसी सुविधाओं का अभाव क्यों है?
पिछले साल, 2024 में 17 विद्यार्थियों ने आत्महत्या की थी, जबकि 2023 में यह आंकड़ा 26 था। इस बार भी जनवरी में तीन आत्महत्याएं हो चुकी हैं। क्या इस वृद्धि का कारण विद्यार्थियों पर परीक्षा का दबाव हो सकता है? मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ, डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी के अनुसार, आत्महत्याओं का कोई एक कारण नहीं होता, बल्कि इसमें पारिवारिक अपेक्षाएं, सामाजिक दबाव और शिक्षा तंत्र की नाकामयाबी भी शामिल है। डॉ. त्रिवेदी मानते हैं कि हम बच्चों को विफलता से निपटना नहीं सिखा पा रहे हैं, जिससे उनकी मानसिक स्थिति बिगड़ रही है।
इसके अलावा, कॉपीकैट इफेक्ट भी आत्महत्याओं को बढ़ावा दे सकता है। जब एक विद्यार्थी सुसाइड करता है, तो वही मानसिक दबाव झेल रहे अन्य विद्यार्थियों पर इसका असर पड़ता है। इसलिए सुसाइड की घटनाओं का संवेदनशील तरीके से प्रसार किया जाना चाहिए।
हालांकि, शिक्षा मंत्रालय ने कोचिंग सेंटर्स के लिए गाइडलाइंस जारी की हैं, लेकिन इन कदमों के बावजूद आत्महत्याओं की घटनाओं में कमी नहीं आई है। इसका मतलब है कि हमें पूरे सिस्टम पर काम करने की आवश्यकता है, ताकि विद्यार्थियों की मानसिक स्थिति को बेहतर बनाया जा सके और वे सही तरीके से पढ़ाई के दबाव को झेल सकें।