2 हजार साल पुराना है  लीची का इतिहास, जानिए भारत तक कैसे पहुंची

Vandana Upadhyay

रसीली लीची भला किसे पसंद नहीं आती है. लोग इस फल को बड़े चाव से खाते हैं

बिहार के मुजफ्फरपुर की लीची विश्व भर में प्रसिद्ध है. यहां की गुलाब खास लीची हर किसी को पसंद आती है

भारत लीची के उत्पादन का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है

लीची सबसे पहले दक्षिण चीन के गुआंगडॉन्ग और फुजियान प्रांत में 1059 में जंगली पौधे से बागों तक पहुंची. चीन में लीची को प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है

लीची चीन के तांग वंश के राजा जुआंग जोंग का पसंदीदा फल था, लेकिन राजा का राज्य उत्तर की ओर था और इस फल की पैदावार सिर्फ दक्षिण में होती थी इसलिए इसे तेज गति से दौड़ने वाले घोड़ों पर लादकर महल तक पहुंचाया जाता था

700 साल तक बाकी दुनिया में लीची को लेकर कोई जानकारी नहीं थी. 18वीं सदी की शुरुआत में फ्रांसीसी यात्री पियरे सोन्नरे ने दक्षिणी चीन की अपनी यात्रा के दौरान इस फल को चखा और इसके बाग देखे

उन्होंने अपने पत्रों और रिपोर्ट में पश्चिमी दुनिया को लीची से रूबरू कराया. 1764 में इसे रियूनियन द्वीप में जोसेफ फ्रैंकोइस द पाल्मा द्वारा लाया गया

इसके बाद यह मैडागास्कर और भारत, दक्षिण-पूर्व एशिया, दक्षिण अफ्रीका, वियतनाम, ब्राजील, थाईलैंड, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका तक पहुंची

भारत में लीची 1770 के आसपास चीन से आई. इतिहास बताता है कि यह पहले पूर्वोत्तर इलाके में आई. त्रिपुरा में लीची की खेती 1700 के आखिर में शुरू हो गई थी

कुछ सालों बाद असम, बंगाल और बिहार तक पहुंची। बिहार में लोगों के पास जमीन के बड़े-बड़े टुकड़े थे, ऐसे में यहां इसकी बागवानी की जाने लगी