राजेश खन्ना की फिल्म आनंद के बेहतरीन डायलॉग्स जिसने बदल दी उनकी जिदंगी

साल 1971 में रिलीज हुई फिल्म आनंद राजेश खन्ना के करियर की हिट फिल्मों में से एक है। 

इस फिल्म में उन्होंने एक कैंसर पेंशेंट का किरदार निभाया था। जिसे जिदंगी से हार ना मानी हो। 

आनंद फिल्म को दर्शकों ने बहुत पसंद किया। इस फिल्म ने राजेश खन्ना के करियर को एक नयी उड़ान दी थी। 

इस फिल्म के बेहतरीन के कई बेहतरीन डायलॉग्स हैं जिन्हें आज भी लोग सुनना पसंद करते हैं। 

मैं मरने से पहले नहीं मरना चाहता… ये तो मैं ही जानता हूं कि ज़िंदगी के आख़िरी पड़ाव पर कितना अंधेरा है

बाबू मोशाय, ज़िंदगी और मौत ऊपर वाले के हाथ में है जहांपनाह, उसे ना आप बदल सकते हैं ना मैं. हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं, जिनकी डोर ऊपर वाले की उंगलियों में बंधी है. कब कौन कहां उठेगा ये कोई नहीं बता सकता.

बाबु मोशाय, ज़िंदगी बड़ी होनी चाहिए…लंबी नहीं

जब तक जिंदा तब तक मरा नहीं जब मरा गया तो साला मैं नहीं

हम आने वाले गम को खींच तान कर आज की खुशी पे ले आते हैं... और उस खुशी में जहर घोल देते हैं

मानता हूं कि जिंदगी की ताकत मौत से ज्यादा है...लेकिन ये जिंदगी क्या मौत से बेहतर नहीं

आनंद मरा नहीं, आनंद मरते नहीं...

मौत तू एक कविता है... मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको... डूबती नब्ज़ों में जब दर्द को नींद आने लगे... ज़र्द सा चेहरा के लिए चाँद उफ़क तक पहुँचे... दिन अभी पानी में हो रात किनारे के करीब... ना अँधेरा, ना उजाला हो... ना अभी रात, ना दिन... जिस्म जब ख़तम हो और रूह को जब सांसें आएं... मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको