चैत्र नवरात्रि शुरू हो चुका हैं, इस 9 दिन के त्यौहार पर लोग मां दुर्गा के मंदिरों में जा कर दर्शन करते हैं। ऐसा एक माता का मंदिर हरियाणा-हिमाचल के सीमा पर स्थित है। सिरमौर जिले में 430 मीटर ऊंचे पहाड़ियों पर स्थित तीन देवियों का धाम है।
कहा जाता है कि लगभग 450 साल प्राचीन है और यहां पर मां त्रि-भवानी, बाला सुंदरी और ललिता, देवियां विराजमान हैं। त्रिलोकपुर से विख्यात इस गांव में नवरात्रि पर चौदह दिन का मेला लगता है। जहां पर भक्तों की भारी संख्या में भीड़ उमड़ती है।
त्रिपुर बाला सुन्दरी का ये प्राचीन मंदिर तीर्थ स्थल एवं पर्यटन की दृष्टि से विशेष स्थान रखता है। यहां पर नवरात्रों में लगने वाले मेले की मुख्य विशेषता है कि किसी प्रकार की शोभा यात्रा नहीं निकाली जाती। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि इस पावन स्थली पर माता साक्षात रूप में विराजमान हैं और यहां पर की गई मनोकामना अवश्य पूरी होती है।
हर साल नवरात्रि में हरियाणा और हिमाचल ही नहीं बल्कि पूरे उत्तर भारत से हजारों श्रद्धालु दर्शन करने के लिए यहां आते हैं। जिले से भी हर रोज हजारों श्रद्धालु त्रिलोकपुर मेले में शामिल होते हैं। यहां जाने के लिए हरियाणा रोडवेज की ओर माता के भक्तों के लिए स्पेशल बसें भी चलाई गई है।
वहीं, प्राइवेट बसों, मैक्सी कैब और टूर एंड ट्रेवल कंपनियों की गाड़ियों से भी हजारों भक्तों को त्रिलोकपुर लेकर जाती है। साथ ही बुजुर्ग और बीमार लोगों के लिए एंबुलेंस की सुविधा, डिस्पेंसरी विश्राम गृह, फस्ट एड और सूचना केंद्र, पार्किंग जैसी सुविधा दी जाती है। इसके अलावा यात्रियों के रहने के लिए यात्री निवास और धर्मशाला की भी व्यवस्था होती है।
पौराणिक कथा के अनुसार, साल 1573 में महामाई बाला सुन्दरी उत्तर प्रदेश के देवबंद नामक स्थान से नमक की बोरी में त्रिलोकपुर आई थीं। लाला रामदास जो सदियों पहले त्रिलोकपुर में नमक का व्यापार करते थे, उनके नमक की बोरी में माता उनके साथ यहां आई थीं।
लाला की दुकान त्रिलोकपुर में पीपल के वृक्ष के नीचे हुआ करती थी। उसने देवबन्द से लाया तमाम नमक दुकान में डाल दिया और बेचते गए मगर नमक समाप्त होने में नहीं आया। लाला जी उस पीपल के वृक्ष को हर रोज सुबह जल दिया करते थे और पूजा करते थे। उन्होंने नमक बेचकर बहुत पैसा कमाया और चिन्ता में पढ़ गए कि नमक समाप्त क्यों नहीं हो रहा।
माता बाला सुन्दरी ने प्रसन्न होकर रात्रि को लाला जी के सपने में आकर दर्शन दिए और बोलीं, ‘‘भक्त मैं तुम्हारे भक्तिभाव से अति प्रसन्न हूं। मैं यहां पीपल के वृक्ष के नीचे पिण्डी रूप में स्थापित हो गई हूं और तुम यहां पर मेरा भवन बनाओ।’’
लाला जी को अब भवन निर्माण की चिन्ता सताने लगी। उसने फिर माता की अराधना की और आह्वान किया कि इतने बड़े भवन निर्माण के लिए मेरे पास सुविधाओं व धन का अभाव है। आप सिरमौर के महाराजा को भवन निर्माण का आदेश दें।
माता ने अपने भक्त की पुकार सुन ली और उस समय के सिरमौर के राजा प्रदीप प्रकाश को सोते समय स्वप्न में दर्शन देकर भवन निर्माण का आदेश दिया। महाराजा ने तुरन्त जयपुर से कारीगरों को बुलाकर भवन निर्माण का कार्य आरंभ करवाया जो सन् 1630 में पूरा हुआ। जो उत्तर-कारीगरी का एक अद्भुत उदाहरण है और यह वास्तुकला में भारत-फारसी शैलियों का मिश्रण है।