बैसाखी पर पड़ी थी 'खालसा पंथ' की नींव, सिखों के लिए माना जाता है बेहद खास 

आज (13 अप्रैल) पंजाब, हरियाणा समेत उत्तरी भारत में बैसाखी का पर्व धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है। सिख समुदाय के लिए बैसाखी का दिन खास महत्व रखता है। दरअसल, इसी दिन से सिख नव वर्ष की शुरुआत होती है।

अलग-अलग राज्यों में बैसाखी को अन्य नामों से भी जाना जाता है। असम में इसे 'बिहू', बंगाल में 'पोइला बैसाख' जैसे नामों से जाना जाता है। इसी तरह इस दिन बिहार में सत्तूआन का पर्व मनाया जाता है। बैसाखी को 'बसोआ' भी कहते हैं। तो आइए जानते हैं बैसाखी से जुड़ी अन्य जरूरी बातों के बारे में।

बैसाखी का सिख धर्म के खालसा पंथ से गहरा नाता है। बैसाखी के ही सिखों के दसवें और आखिरी गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 को खालसा पंथ की स्थापना की थी। इस दिन गुरु गोबिंद सिंह ने सभी लोगों को मानवता का पाठ पढ़ाया और उच्च और निम्न जाति समुदायों के बीच के अंतर को खत्म करने का उपदेश दिया। 

सिख धर्म से जुड़ी मान्यताओं के मुताबिक, बैसाखी के मौके पर आनंदपुर साहिब की पवित्र भूमि पर हजारों की संख्या में संगत जुटी थी, जिसका नेतृत्व गुरु गोबिंद सिंह जी कर रहे थे। उन्होंने कहा कि धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए मुझे पांच बंदों की जरूरत है, जो अपने बलिदान से धर्म की रक्षा करने में सक्षम हों। 

इसके बाद गुरु जी के आह्वान पर एक-एक करके 5 सिख उठे तथा गुरु चरणों में शीश अर्पित करने के लिए तत्पर हुए। दशमेश पिता ने इन पांचों सिखों को खंडे-बाटे का अमृत छकाया और सिंह सजा दिया। अमृत छक कर ये बन गए भाई दया सिंह, भाई धरम सिंह, भाई हिम्मत सिंह, भाई मुहकम सिंह और भाई साहिब सिंह। गुरु जी ने इन्हें पांच प्यारे कह कर संबोधित किया।

आनंदपुर साहिब में गुरु गोबिंद ने इन्हें 'पंज प्यारे' नाम दिया था। इन्हें पहले खालसा के रूप में पहचान मिली। फिर दशमेश पिता ने स्वयं इन ‘पांच प्यारों’ को गुरु रूप मानते हुए इनसे अमृत छका और स्वयं भी गोबिंद राय से गोबिंद सिंह बन गए। तभी से सिख धर्म में पंज प्यारे का काफी महत्व है। 

गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिख पुरुषों को अपने नाम के साथ सिंह और महिलाओं को अपने नाम के साथ कौर लगाने का आदेश दिया था। इसके अलावा उन्होंने खालसा को पंज ककार- केश, कंघा, कछहरा, कड़ा और कृपाण धारण करने के लिए कहा था। 

बैसाखी का पर्व पर सभी गुरुद्वारों में पाठ-कीर्तन रखा जाता है,  अंत में लोग लंगर छकते हैं। इस दिन शाम के समय घर के बाहर लकड़ियां जलाई जाती हैं। जलती हुई लकड़ियों का घेरा बनाकर गिद्दा और भांगड़ा कर अपनी प्रसन्नता जाहिर करते हैं। लोग गले लगकर एक दूसरे को बैसाखी की शुभकामनाएं देते हैं। 

इसके अलावा यह भी कहते हैं कि बैसाखी के दिन ही महाराजा रणजीत सिंह को सिख साम्राज्य का प्रभार सौंप दिया गया।  महाराजा रणजीत सिंह ने तब एक एकीकृत राज्य की स्थापना की।  इसी के चलते ये दिन बैसाखी के तौर पर मनाया जाने लगा।