चैत्र नवरात्रि का त्योहार चल रहा है. नवरात्रि में श्रद्धालु अष्टमी या नवमी पर कन्या पूजन करते हैं और भोजन खिलाते हैं. आइए जानते हैं कन्या पूजन का क्या महत्व है, विधि और जरूरी बातें जो ध्यान रखना बहुत जरूरी होती हैं.
चैत्र नवरात्रि की अष्टमी इस साल 16 अप्रैल और 17 अप्रैल को नवमी मनाई जाएगी. इन दोनों दिन कन्या पूजन करा जा सकता है. इन दोनों तिथि पर सुबह हवन करते हैं और इसके बाद कन्याओं को भोजन खिलाया जाता है. इन दिनों में आप क्षमता के अनुसार कन्याओं को दान देना चाहिए.
कन्या पूजन केवल नवरात्रि में नहीं बल्कि किसी भी शुभ कार्य की पूजा में किया जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नवरात्रि के 9 दिन के उपवास के बाद कन्या पूजन करने से माता दुर्गा प्रसन्न होती हैं और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है. कन्या पूजन करने से कुंडली के 9 ग्रह मजबूत होते हैं.
कन्या पूजन के लिए कन्याओं को एक दिन पहले आमंत्रित करना चाहिए. इसके बाद कन्याओं को घर पर स्वच्छ जगह पर बिठाएं और उनके पैरों को धोएं. इसके बाद कन्याओं के मस्तक पर तिलक लगाएं. कन्याओं को कंगना बंधे या फिर मौली बांधे।
फिर ज्योत जगा कर कन्याओं का पूजन करें और इसके बाद सभी कन्याओं को भोजन खिलाएं. फिर कन्याओं को क्षमता अनुसार कुछ उपहार और दान दें. इसके बाद कन्याओं के पैर छूकर आशीर्वाद लें.
केवल 2 से 10 वर्ष की बच्चियों को ही कन्या स्वरूप में पूजा जाता हैं। शास्त्रों के अनुसार, 2 वर्ष की कन्या को कुमारी माना जाता है. 3 वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ति (देवी दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती) माना जाता है. 4 वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है.
5 वर्ष की कन्या को रोहिणी माना जाता है. 6 वर्ष की कन्या को माता कालिका माना जाता है. 7 वर्ष की कन्या को चंडिका माना जाता है. 8 वर्ष की कन्या को शांभवी माना जाता है. 9 वर्ष की कन्या को देवी दुर्गा माना जाता है. 10 वर्ष की कन्या को सुभद्रा कहा जाता है.
ध्यान रखें की कन्याओं की उम्र 2 से 10 साल के बीच होनी चाहिए. कन्याओं की संख्या कम से कम 9 होनी चाहिए, इनके अलावा एक बालक भी होना जरूरी माना जाता है. कन्या पूजन में हमेशा कन्याओं को उनके सामर्थ्य अनुसार खाना परोसें, जबरदस्ती किसी को भी खाना न खिलाएं.