हिंदू धर्म में मंगलसूत्र एक पवित्र और अटूट श्रृंगार के रूप में धारण किया जाता है. मंगलसूत्र पतिव्रत स्त्री का प्रतीक है. यह मंगलसूत्र विवाह संस्कार के समय कन्या के गले में पहनाया जाता है.
मंगलसूत्र मंगल और सूत्र दो शब्दों को मिलकर बना है. 'मंगल' का अर्थ होता है पवित्र और 'सूत्र' का मतलब होता है पवित्र धागा (मंगलकारी धागा). ऐसा माना जाता है कि मंगलसूत्र केवल पति की रक्षा ही नहीं मंगलसूत्र महिलाओं के लिए भी रक्षा कवच है. ये सुहागिनों के लिए धर्म और आस्था का भी प्रतीक है.
मंगलसूत्र को जिस समय स्त्री अपने गले में धारण करती है, उसे संपूर्ण स्त्री की प्रथम अनुभूति होती है. मंगलसूत्र वैवाहिक बंधन के सकुशल संपन्न होने का तो प्रतीक है ही, ये इस बंधन को जन्मों तक निभाने की कसम भी है.
मंगलसूत्र, परंपरा और आस्था से जुड़ा एक ऐसा आभूषण है जो वैवाहिक जीवन की सफलता को मजबूती प्रदान करता है. इसलिए मंगलसूत्र से स्त्री का भावनात्मक रिश्ता भी होता है, क्योंकि इसमें उसे अपने सुखद वैवाहिक जीवन का प्रतिबिम्ब दिखाई देता है.
मंगलसूत्र वास्तव में पुरातन काल में दक्षिण भारत में अधिक प्रचलित था. तमिलनाडु में इसे 'थाली' कहते हैं जहां पीले धागे में नीचे एक थालीनुमा पेंडेंट लगा रहता है. कई जगहों पर पीले धागे से बनता है. मंगलसूत्र में पीले रंग का होना भी आवश्यक है. पीले धागे में काले रंग के मोती पिरोए जाते हैं.
कहीं इसमें लाल मूंगा या कोरल या पोला गुंथे होते हैं. महाराष्ट्र में काली और सोने की मोतियों से बने मंगलसूत्र पहने जाते हैं. महिलाओं द्वारा मंगलसूत्र को शरीर में धारण करने से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा आती है.
साथ ही गुरु ग्रह के प्रभाव को मजबूत करता है, जो वैवाहिक जीवन में आनंद लाता है. यह माना जाता है कि इसके पहनने से रक्तचाप अच्छा रहता है और महिलाओं को चिंता, तनाव से दूर रखा जा सकता है.
कहा जाता है कि काला रंग शनि देवता का प्रतीक होता है,ऐसे में काले मोती महिलाओं और उनके सुहाग को बुरी नजर से बचाते हैं. पीला रंग बृहस्पति ग्रह का प्रतीक होता है जो शादी को सफल बनाने में मदद करता है.