Monday, November 25, 2024
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पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में बोली युवती- जब भी देखूंगी बच्चे की शक्ल, तो याद आएगा दुष्कर्म

हाई कोर्ट के आदेश के अनुसार, जन्म पर बच्चे को बाल कल्याण को समिति सौंपा जा सकता है। संबंधित जिले की बाल कल्याण समिति महिला के बच्चे को जन्म देने के बाद अधिकारियों को सौंपने के संबंध में सभी आवश्यक दस्तावेज और औपचारिकताएं पूरी करेंगी।

चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में आंसुओं के बीच एक नई इबारत लिखी गई जब एक गर्भवती युवती ने मजबूरी में अपने नवजात को अपनाने से इंकार कर दिया। दरअसल युवती का दुष्कर्म किया गया था और इसी के तहत वह गर्भवती हो गई थी। मेडिकल इश्यू की वजह से गर्भ गिराया नहीं जा सकता था इसलिए युवती को बच्चे को जन्म देना मजबूरी है। जब युवती ने हाईकोर्ट में बच्चे को अपनाने से इंकार करते हुए कहा – जन्म के बाद जब भी इसे देखूंगी तो इसकी शक्ल में मुझे दुष्कर्म याद आएगा।

इसके बाद पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार को प्रसव के बाद बच्चे की कस्टडी लेने का आदेश दिया है। मामले के अनुसार रेवाड़ी जिले की रहने वाली युवती ने बच्चे को अपने पास रखने से इनकार कर दिया था क्योंकि यह उसे लगातार दुष्कर्म की याद दिलाता रहेगा और बच्चा उसके स्थायी सामाजिक बहिष्कार आधार बन जायेगा। भ्रूण को खत्म करने के खिलाफ पीजीआई चंडीगढ़ द्वारा दी गई एक चिकित्सीय राय के कारण गर्भावस्था को समाप्त नहीं किया जा सका।

हाई कोर्ट के आदेश के अनुसार, जन्म पर बच्चे को बाल कल्याण को समिति सौंपा जा सकता है। संबंधित जिले की बाल कल्याण समिति महिला के बच्चे को जन्म देने के बाद अधिकारियों को सौंपने के संबंध में सभी आवश्यक दस्तावेज और औपचारिकताएं पूरी करेंगी। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि सभी चरणों में मां की गोपनीयता बरकरार रखी जाएगी और अस्पताल में भर्ती होने और इलाज के दौरान याचिकाकर्ता की पहचान उजागर नहीं की जाएगी। हाई कोर्ट के जस्टिस विनोद एस भारद्वाज ने हरियाणा के रेवाड़ी जिले की एक महिला द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए ये आदेश पारित किए हैं।

महिला के साथ रेवाड़ी निवासी एक व्यक्ति ने दुष्कर्म किया था, जिसके संबंध में एफआईआर दर्ज हो चुकी है। उसने गर्भ को गिराने करने की मांग के लिए इस हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, क्योंकि उसका गर्भ 26 सप्ताह से ज्यादा का हो चुका था। उसकी याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने ने पीजीआई चंडीगढ़ को एक मेडिकल बोर्ड गठित करने का आदेश दिया था ताकि याचिकाकर्ता की जांच की जा सके और एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जा सके।

हालांकि, मेडिकल बोर्ड ने दो बार रिपोर्ट दी जिसके अनुसार गर्भ का समय ज्यादा होने व चिकित्सा जटिलताओं के आधार पर इस स्तर पर गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। इस पर याची महिला की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि वह उस बच्चे को अपने पास रखने की इच्छा नहीं रखती क्यों की यह बच्चा उसे दुष्कर्म की याद दिलाता रहेगा और उसका सामाजिक बहिष्कार का कारण बन सकता है। इस बच्चे के कारण उसके भविष्य की संभावनाओं पर असर पड़ेगा।

सभी पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि कानून उसे यह हक देता है कि वह गर्भधारण चाहती है या नहीं। लेकिन मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर इस चरण में गर्भ को समाप्त करने का कोई भी प्रयास, समय से पहले प्रसव का कारण बन सकता है और मां को खतरे में डालने के अलावा अजन्मे बच्चे के विकास को प्रभावित कर सकता है, जो कि सही नहीं है। कोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए सरकार को कहा कि वह पैदा होने पर बच्चे की कस्टडी ले और मां व बच्चे को उचित चिकित्सा देखभाल प्रदान करे।

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