Friday, March 29, 2024
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गर्मी से आने से पहले ही धधक उठे उत्तराखंड के जंगल 

Uttarakhand: इस साल गर्मी आने से पहले ही उत्तराखंड (Uttarakhand) के जंगल आग में धधक उठे हैं। गढ़वाल और कुमाऊं मंडल के कई जंगलों से आग लगने की खबर सामने आयी है। कुमाऊं मंडल में इस बार गढ़वाल से ज्यादा आग लगने की खबरें सामने आ रही है। अब तक यहां के 20 जंगलों में आग लगने की खबर सामने आ चुकी है। 40 हेक्टेयर से ज्यादा जंगल जलकर राख हो चुके हैं।

 शुष्क मौसम और बारिश की कमी के कारण जंगलों में आग (Uttarakhand)

वन विभाग और वन के अधिकारियों का कहना है कि मौसम का शुष्क होना, इस बार बारिश और बर्फबारी के कम होने के कारण उत्तराखंड के जंगलों में आग लग रही है। हर साल मई और जून के महीने में पर्वतीय क्षेत्रों के जंगलों में आग लगती है उस वक्त गर्मी अपने प्रचंड रुप में होती है। लेकिन इस बार फरवरी और मार्च के महीने में ही जंगलों में आग लग रही है।

कुछ वन माफिया भी करते हैं करतूतें 

उत्तराखंड वन विभाग के कुमाऊं मंडल के दक्षिणी परिक्षेत्र के वरिष्ठ वन अधिकारी आकाश कुमार ने इस मामले को लेकर कहा है कि पर्वतीय क्षेत्रों में इस बार गर्मियों से पहले ही आग लगने की जो घटनाएं हुई हैं उसका प्रमुख कारण मौसम का शुष्क होना, बारिश और बर्फबारी का कम होना है। उत्तराखंड के कई संवेदनशील इलाकों में आग लगने की घटनाएं घटित हुई है। कुछ घटनाएं प्राकृतिक कारणों से हुई  है जबकि कुछ वन माफियाओं के कारण हुई हैं।

उत्तराखंड के वन विभाग के पास वन माफियों से निपटने के लिए संसाधनों का अभाव है। वन विभाग के पास डेढ़ सौ से ज्यादा वन दरोगाओ की कमी है। कई वन सुरक्षा कर्मी हैं जिसके पास माफियो से निपटने के लिए प्रयाप्त हथियार नहीं है।हरे भरे जंगलों में आग लगने के कारण भारी तादाद में वन संपदा और वन्यजीवों का नुकसान हो रहा है।

चीड़ की पत्तियों में आग लगाते हैं तस्कर 

वन तस्कर सबसे पहले चीड़ की पत्तियों में आग लगाते हैं जिससे पूरे जंगल में आग लग जाती है। जबकि लोग जंगलों के आसपास रहते हैं वे भी जली हुई बीड़ी, सिगरेट या माचिस की जलती तिल्ली चीड़ के वन क्षेत्र में डाल देते हैं जिससे तुरंत आग पकड़ लेती है। इनमें अगर एक बार आग लग जाए तो यह आग को और भी तेजी से फैलाने का काम करता है।

जारी किया गया आदेश 

आग लगने की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए उत्तराखंड के प्रमुख सचिव आरके सुधांशु ने आदेश जारी किय है। इसमें कहा गया है कि जंगल की आग पर काबू केवल वन विभाग नहीं कर सकता। इसके लिए जिला, विकासखंड और वन पंचायत स्तर पर समितियों का गठन किया जाए।

उत्तराखंड के जंगलों में आग लगाने वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया जाएगा। वनों में आग की रोकथाम के लिए जरूरत पड़ने पर सेना और अर्द्धसैनिक बलों का भी सहयोग लिया जाएगा। शासन की ओर से इस संबंध में सभी जिलाधिकारियों को आदेश जारी किया गया है राजस्व, पुलिस, चिकित्सा, लोक निर्माण विभाग, वन पंचायत प्रबंधन आदि अन्य विभागों से समन्वय बनाया जाए।

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एसडीआरएफ, आपदा और अग्नि शमन विभाग का सहयोग लिया जाए। जरूरत पड़ने पर वाहनों को अधिग्रहित कर इन वाहनों को प्रभागीय वनाधिकारियों के नियंत्रण में दिया जाए वन पंचायत व कई आरक्षित वनों में वनाग्नि घटनाओं की मुख्य वजह वनों से सटी हुई कृषि भूमि पर पराली जलाने से पाया गया है।

संवेदनशील और अतिसंवेदनशील क्षेत्रों में कलस्टर के आधार पर गठित ग्राम पंचायत स्तरीय वनाग्नि सुरक्षा प्रबंधन समितियों के कार्यों की निगरानी की जाए।

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