Mirjapur: क्या आप कभी शौच के पानी को पीने के बारें में सोच सकते हैं या फिर उस पानी से खाना पकाने के बारें में ? इस्तेमाल करना तो दूर सोचकर ही सबको घृणा आती है। लेकिन मिर्ज़ापुर से तक़रीबन 60 किमी दूर बसे चंद्रगढ़ के लोग शौच का पानी पीने और उससे खाना पकाने को मजबूर नहीं हैं। एक दो साल नहीं बल्कि कई सालों से यहां पर रहने वाले लोग साफ पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं। लोकेशन की बात करें तो यह मिर्जापुर के मुख्यालय से करीबन 60 किमी दूर चंद्रगढ़ मुडैल के रास्ते बबुरा रघुनाथ सिंह और करनपुर गांव की ओर जाता है।
यह रास्ता ड्रमंडगंज वन रेंज की सीमा क्षेत्र से भी गुजरता है। घने जंगलों के साथ पहाड़ी भू-भाग,पहाड़ी नदी-नालों से गुजरता यह इलाका चंबल के बीहड़ इलाकों का एहसास दिलाता है। यहां पाल (गडेरिया), कोल (आदिवासी), मुसलमान सहित अन्य जातियों के लोग यहां रहते हैं। यह मध्य प्रदेश के रीवां जनपद के हनुमान इलाके के बिल्कुल नजदीक का है। हलिया मिर्जापुर जनपद का अंतिम छोर ही नहीं बल्कि अंतिम विकासखंड भी है। हलिया विकासखंड का भैंसोड़ बलाय पहाड़, लहुरियादह, देवहट, चंद्रगढ़ मुंडेल, बबुरा रघुनाथ सिंह, करनपुर इत्यादि कई ऐसे पहाड़ी गांव हैं जो पानी सहित तमाम उन बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं जो सरकार और जनप्रतिनिधियों के एजेंडे में होते तो हैं, लेकिन यहां धरातल पर ऐसा कुछ नहीं है जिसे विकास की कड़ी से जोड़कर देखा जा सके। यहां के लोग बिजली, पानी जैसी तमाम सुविधाओं से दूर हैं। आज के दौर में सरकार के द्वारा हर घर नल जल योजना चलाई जा रही है लेकिन इसके बावजूद यहां लोगों को साफ पानी पीने को नसीब में नहीं है। लोग नदी नालों एवं चुआड़ (पहाड़ों से रिस कर आने वाला पानी) को पीने के लिए मजबूर हैं। रोजी-रोजगार के साथ ही मेहनत-मजदूरी, खेती किसानी और मवेशी पालन यहां के लोगों का मुख्य जीविका का साधन है। कुछ लोगों के पास सिंचाई के लिए निजी साधन है वरना बहुमत हिस्से के लिए कुदरती बरसात ही सिंचाई का मुख्य साधन बनी हुई है।
यहां पर पक्की सड़कों का भी अभाव है। पहाड़ी नदी पर पुल ना होने के कारण बरसात के दिनों में आवागमन पूरी तरह से बाधित हो जाता है। यह समस्या कोई दो-चार, 10 सालों की नहीं बल्कि देश की आज़ादी के बाद से चली आ रही है। लोगों का कहना है कि चुनाव के दौरान जनप्रतिनिधि इस तरफ झांकने तक नहीं आते हैं। कई ग्रामीणों को तो अपने जनप्रतिनिधियों का भी नाम नहीं पता है। आजादी के इतने सालों के पश्चचात जब ऐसे गांवों की स्थितियों के बारें में पता चलता है तो सरकार के द्वारा चलाई जा रही है सारी योजनाएं मानो धूमिल सी लगती हैं।