देश में आज यानी कि सोमवार से तीन नए आपराधिक कानून लागू हो गए हैं। अभी तक तो देश में भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और 1872 का भारतीय साक्ष्य अधिनियम था, लेकिन अब उनकी जगह भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा सहायता, भारतीय साक्ष्य अधिनियम ने ले ली है।नए कानूनों में कुछ धाराएं हटा दी गई हैं तो कुछ नई धाराएं जोड़ी गई हैं।
कानून में नई धाराएं शामिल होने के बाद पुलिस, वकील और अदालतों के साथ-साथ आम लोगों के कामकाज में भी काफी बदलाव आ जाएगा.
बदल गए न्याय संहिताओं के नाम
- इंडियन पीनल कोड (IPC) अब हुई भारतीय न्याय संहिता (BNS)
- कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर (CrPC) अब हुआ भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS)
- इंडियन एविडेंस एक्ट (IEA) अब हुआ भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA)
1. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में हुए अहम बदलाव
- भारतीय दंड संहिता (CrPC) में 484 धाराएं थीं, जबकि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में 531 धाराएं हैं। इसमें इलेक्ट्रॉनिक तरीके से ऑडियो-वीडियो के जरिए साक्ष्य जुटाने को अहमियत दी गई है।
- नए कानून में किसी भी अपराध के लिए अधिकतम सजा काट चुके कैदियों को प्राइवेट बॉन्ड पर रिहा करने की व्यवस्था है।
- कोई भी नागरिक अपराध होने पर किसी भी थाने में जीरो एफआईआर दर्ज करा सकेगा। इसे 15 दिन के अंदर मूल जूरिडिक्शन, यानी जहां अपराध हुआ है, वाले क्षेत्र में भेजना होगा।
- सरकारी अधिकारी या पुलिस अधिकारी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए संबंधित अथॉरिटी 120 दिनों के अंदर अनुमति देगी। यदि इजाजत नहीं दी गई तो उसे भी सेक्शन माना जाएगा।
- एफआईआर दर्ज होने के 90 दिनों के अंदर आरोप पत्र दायर करना जरूरी होगा। चार्जशीट दाखिल होने के बाद 60 दिन के अंदर अदालत को आरोप तय करने होंगे।
- केस की सुनवाई पूरी होने के 30 दिन के अंदर अदालत को फैसला देना होगा। इसके बाद सात दिनों में फैसले की कॉपी उपलब्ध करानी होगी।
- हिरासत में लिए गए व्यक्ति के बारे में पुलिस को उसके परिवार को ऑनलाइन, ऑफलाइन सूचना देने के साथ-साथ लिखित जानकारी भी देनी होगी।
- महिलाओं के मामलों में पुलिस को थाने में यदि कोई महिला सिपाही है तो उसकी मौजूदगी में पीड़ित महिला का बयान दर्ज करना होगा।
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) में कुल 531 धाराएं हैं। इसके 177 प्रावधानों में संशोधन किया गया है. इसके अलावा 14 धाराएं खत्म हटा दी गई हैं।
- इसमें 9 नई धाराएं और कुल 39 उप धाराएं जोड़ी गई हैं. अब इसके तहत ट्रायल के दौरान गवाहों के बयान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए दर्ज हो सकेंगे।सन 2027 से पहले देश के सारे कोर्ट कम्प्यूरीकृत कर दिए जाएंगे।
2 .भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) में आया परिवर्तन
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम में कुल 170 धाराएं हैं। अब तक इंडियन एविडेंस एक्ट में 167 धाराएं थीं।नए कानून में 6 धाराएं निरस्त कर दी गई हैं। इस अधिनियम में दो नई धाराएं और 6 उप धाराएं जोड़ी गई हैं। इसमें गवाहों की सुरक्षा के लिए भी प्रावधान है। दस्तावेजों की तरह इलेक्ट्रॉनिक सबूत भी कोर्ट में मान्य होंगे। इसमें ई-मेल, मोबाइल फोन, इंटरनेट आदि से मिलने वाले साक्ष्य शामिल होंगे।
- ‘दस्तावेज’ के तहत इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रिकॉर्ड, ईमेल, सर्वर लॉग, कंप्यूटर में फाइलें, स्मार्टफोन/लैपटॉप संदेश, वेबसाइट, लोकेशन डाटा; डिजिटल उपकरणों पर मेल संदेश शामिल हैं।
- FIR, केस डायरी, चार्ज शीट और फैसले का डिजिटलीकरण जरूरी। साथ ही समन और वॉरंट जारी करना और तामील करना। शिकायतकर्ता और गवाहों की जांच, साक्ष्य की रिकॉर्डिंग, मुकदमेबाजी और सभी अपीलीय कार्यवाही।
- सभी पुलिस स्टेशनों और अदालतों द्वारा बनाए जाने वाले ईमेल के लिए रजिस्टर। इसमें पार्टियों के ई-मेल आईडी, फोन नंबर और अन्य विवरण शामिल हों
- पुलिस की ओर से किसी भी संपत्ति की तलाशी और जब्ती अभियान की विडियो रिकॉर्डिंग। रिकॉर्डिंग बिना किसी देरी के संबंधित मैजिस्ट्रेट को भेजी जाएगी।
- सात साल या उससे अधिक वर्षों की जेल की सजा वाले सभी मामलों में फॉरेंसिक विशेषज्ञ हो। इसके लिए राज्यों/ केंद्रशासित प्रदेशों में 5 साल के भीतर बुनियादी ढांचा तैयार किया जाएगा।
3 .भारतीय न्याय संहिता (BNS) में किए गए बदलाव
- आईपीसी में जहां 511 धाराएं थीं, वहीं बीएनएस में 357 धाराएं हैं।
- महिलाओं और बच्चों से जुड़े अपराध : इन मामलों को धारा 63 से 99 तक रखा गया है। अब रेप या बलात्कार के लिए धारा 63 होगी। दुष्कृत्य की सजा धारा 64 में स्पष्ट की गई है। सामूहिक बलात्कार या गैंगरेप के लिए धारा 70 है। यौन उत्पीड़न को धारा 74 में परिभाषित किया गया है। नाबालिग से रेप या गैंगरेप के मामले में अधिकतम सजा में फांसी का प्रावधान है।
- दहेज हत्या और दहेज प्रताड़ना को क्रमश : धारा 79 और 84 में परिभाषित किया गया है। शादी का वादा करके यौन संबंध बनाने के अपराध को रेप से अलग रखा गया है. यह अलग अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है।
- हत्या : मॉब लिंचिंग को भी अपराध के दायरे में लाया गया है। इन मामलों में 7 साल की कैद, आजीवन कारावास या फांसी का प्रावधान किया गया है. चोट पहुंचाने के अपराधों को धारा 100 से धारा 146 तक में परिभाषित किया गया है। हत्या के मामले में सजा धारा 103 में स्पष्ट की गई है। संगठित अपराधों के मामलों में धारा 111 में सजा का प्रावधान है। आंतकवाद के मामलों में टेरर एक्ट को धारा 113 में परिभाषित किया गया है।
- वैवाहिक बलात्कार : इनमामलों में यदि पत्नी 18 साल से अधिक उम्र की है तो उससे जबरन संबंध बनाना रेप (मैराइटल रेप ) नहीं माना जाएगा। यदि कोई शादी का वादा करके संबंध बनाता है और फिर वादा पूरा नहीं करता है तो इसमें अधिकतम 10 साल की सजा का प्रावधान है।
- राजद्रोह : बीएनएस में राजद्रोह के मामले में अलग से धारा नहीं है, जबकि आईपीसी में राजद्रोह कानून है। बीएनएस में ऐसे मामलों को धारा 147-158 में परिभाषित किया गया है। इसमें दोषी व्यक्ति को उम्रकैद या फांसी का प्रावधान है।
- मानसिक स्वास्थ्य : मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने को क्रूरता माना गया है. इसमें दोषी को 3 साल की सजा का प्रावधान है।
- चुनावी अपराध : चुनाव से जुड़े अपराधों को धारा 169 से 177 तक रखा गया है।