Thursday, April 25, 2024
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जानिए कब है ज्येष्ठ पूर्णिमा

Jyeshtha Purnima 2023: हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को ज्येष्ठ पूर्णिमा मनाई जाती है। इस दिन लोग उपवास रखते हैं साथ ही सत्यनारायण भगवान और चंद्रदेव की पूजा करते हैं। कहते हैं ज्येष्ठ पूर्णिमा की रात में मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करने से धन संपत्ति की कमी नहीं होती है। लेकिन इस साल ज्येष्ठ पूर्णिमा (Jyeshtha Purnima 2023) और ज्येष्ठ पूर्णिमा स्नान दान की तारीखें अलग-अलग हैं।

ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत तिथि (Jyeshtha Purnima 2023)

इस साल पंचाग के अनुसार,  पूर्णिमा तिथि 3 जून शनिवार को सुबह 11 बजकर 16 मिनट से प्रारंभ हो रही है और यह अगले दिन 4 जून रविवार को सुबह 09 बजकर 11 मिनट तक है। ऐसे में 3 जून से ज्येष्ठ पूर्णिमा लग रही है और 4 जून को सुबह खत्म हो रही है। 3 जून को ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत रखा जायेगा। पूर्णिमा तिथि में जिस रात चंद्रमा होगा, उस दिन ज्येष्ठ पूर्णिमा का व्रत रखा जाएगा। पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ पूर्णिमा का चंद्रमा 3 जून को प्राप्त हो रहा है, इसलिए व्रत भी 3 जून को होगा।

ज्येष्ठ पूर्णिमा स्नान और दान 

3 जून को ज्येष्ठ पूर्णिमा का व्रत रखा जायेगा। इसके अगले दिन 4 जून की सुबह शुभ मुहूर्त में स्नान और दान किया जायेगा।  इस दिन साध्य और सिद्ध योग बन रहे हैं। सुबह 11 बजकर 59 मिनट तक सिद्ध योग है और उसके बाद से साध्य योग लग जायेगा।

ज्येष्ठ पूर्णिमा वट सावित्री व्रत

ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन वट सावित्री व्रत को किया जाता है और वट सावित्री पूजन होता है। इस दिन व्रत और पूजा करना सौभाग्य को देने वाला और संतान की प्राप्ति कराने वाला होता है। स्कंद पुराण और भविष्योत्तर पुराण के अनुसार ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन से संबंधित पूजा एवं वट सावित्री व्रत की महिमा को बताया गया है।

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वट वृक्ष का पूजन – इस दिन वट वृक्ष का पूजन होता है। वट वृक्ष पूजन में वृक्ष की परिक्रमा की जाती है। इस ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन वट वृक्ष की पूजा करने से त्रिदेवों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। सुहागन स्त्रियों के अतिरिक्त कुंवारी कन्याएं भी इसका पूजन कर सकती हैं।  इस दिन इस वट का पूजन करने से सुहागिनों को सदा सौभाग्यवती होने का सुख प्राप्त होता है और संतान के सुख की प्राप्ति होती है। जहां वट वृक्ष स्थापित होता है वहां स्त्रियां परंपरागत रुप से इस वृक्ष का पूजन करती हैं।

वट वृक्ष की पूजा में वृक्ष की परिक्रमा की जाती है। तीन, पांच या सात बार इसकी परिक्रमा करते हैं। इसके साथ ही परिक्रमा करते समय कच्चे सूत-धागे को पेड़ पर लपेटा जाता है। इसके साथ ही चंदन, अक्षत, रोली इत्यादि से तिलक किया जाता है। वट के पेड पर फूल, सुहाग की सामग्री, इत्यादि भी अर्पित की जाती है। साथ ही पूरी ओर अन्य प्रकार के पकवानों का भोग भी चढ़ाया जाता है। वृक्ष के सामने दीपक भी जलाया जाता है और इस वृक्ष पर जल अर्पित किया जाता है।

 

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