Ganesh Utsav: इस वक्त पूरे देश में गणेश उत्सव (Ganesh Utsav) की धूम मची हुई है। चारों ओर भगवान गणपति पधारे हुए हैं। भगवान गणेश को खुश करने के लिए दुर्वा और सिंदूर चढ़ाया जाता है। भगवान गणेश की पूजा में साबुत हल्दी, साबुत सुपारी, जेनऊ के साथ-साथ उन्हें मोदक का भोग लगाया जाता है। लेकिन भगवान गणेश की पूजा में तुलसी नहीं चढ़ाई जाती है।
गणेश जी (Ganesh Utsav) को क्यों नहीं चढ़ती है तुलसी
कहते हैं कि एक बार गणपति जी गंगा नदी के किनारे तपस्या कर रहे थे। इसी दौरान धर्मात्मज की कन्या तुलसी विवाह की इच्छा लेकर तीर्थ यात्रा पर निकली। देवी तुलसी सभी तीर्थस्थलों का भ्रमण करते हुए गंगा के तट पर पहुंचीं और उन्होंने देखा कि युवा गणेशजी तपस्या में लीन हैं।
तपस्या में लीन गणेश जी रत्न जटित सिंहासन पर विराजमान थे। उनके समस्त अंगों पर सुगन्धित चंदन लगा हुआ था और गले में पारिजात पुष्पों के साथ स्वर्ण-मणि रत्नों के अनेक सुन्दर हार सुशोभित थे। उनकी कमर में अत्यन्त कोमल रेशम का लाल पीताम्बर लिपटा हुआ था। श्रीगणेश के इस स्वरूप पर देवी तुलसी मोहित हो गईं। तुलसी के मन में विवाह करने की इच्छा जाग्रत हुई। तुलसी ने जब विवाह की इच्छा से गणेशजी का ध्यान भंग कर दिया तो उन्होंने तुलसी द्वारा तप भंग करने को अशुभ बताया। तुलसी की विवाह की मंशा जानने पर गणेशजी ने खुद को ब्रह्मचारी बताया और प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
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विवाह प्रस्ताव ठुकराने पर तुलसी ने नाराज होकर गणेशजी को श्रॉप दिया कि उनके एक नहीं, बल्कि दो विवाह होंगे। इस पर श्री गणेश ने भी तुलसी को श्रॉप दे दिया कि तुम्हारा विवाह एक असुर से होगा। एक राक्षस की पत्नी होने के इस श्रॉप के बारे में सुनकर तुलसी ने गणेशजी से माफी मांगी। इस पर गणेशजी ने तुलसी से कहा कि तुम्हारा विवाह शंखचूर्ण राक्षस से होगा। इसके बाद भी तुम भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण को प्रिय होने के साथ ही कलयुग में जगत के लिए जीवन और मोक्ष देने वाली होगी लेकिन मेरी पूजा में तुलसी चढ़ाना शुभ माना जाएगा। इसके बाद से ही भगवान गणेश की पूजा में तुलसी चढ़ाना वर्जित माना जाता है।