Friday, March 29, 2024
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“लाला” जी को छोड़ कोई नहीं ढहा पाया पंजाबियों का किला

डॉ अनुज नरवाल रोहतकी “म्हारी विधानसभा” सीरीज की तीसरी किस्त में हम बात करने जा रहे है एक ऐसी विधानसभा सीट की जो आरक्षित न होते हुए भी पंजाबी और बनियों के लिए आरक्षित नजर आती है. अब तक यहाँ से इन्हीं बिरादरियों के नेता ही बाजी मारते रहे हैं. जी हां, हम बात कर रहे हैं रोहतक विधानसभा सीट की. रोहतक विधानसभा सीट देश के पहले चुनाव (1951) से अस्तित्व में हैं. उस वक्त से साल 2019 तक यहाँ पर 17 विधानसभा चुनाव जिसमें एक उपचुनाव (1985)भी शामिल है. तीन ही मौके ऐसे आये जब यहाँ से बनिया बिरादरी का विधायक बना अन्यथा यहाँ से 14 दफा सिर्फ पंजाबी समुदाय के ही विधायक बने हैं. सबसे ज्यादा चुनाव जीतने का रिकॉर्ड डॉ. मंगल सेन के नाम है. वे यहाँ से 7 बार विधायक बने.

रोहतक के पहले विधायक 1951 में देवराज सेठी बने थे. वे कांग्रेस पार्टी से थे. उनकी कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. वह किसी और दिन आपको बताएँगे. अब आगे बढ़ते हैं. अगले चुनाव, यानी 1957 में जनसंघ के डॉ. मंगलसेन ने रोहतक से जीत दर्ज की. उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी रामसरूप को हराया था. कांग्रेस इस चुनाव में तीसरे नम्बर पर रही थी और उस वक्त कांग्रेस की प्रत्याशी शन्नो देवी थी. डॉ. मंगल सेन ने साल 1957(अखिल भारतीय भारतीय जनसंघ) से लेकर 1962 (जनसंघ), 1967 (भारतीय जनसंघ)और 1968(भारतीय जनसंघ) की टिकट पर चुनाव में जीत का चौका लगाया, लेकिन साल 1972 के विधानसभा चुनाव में सेठ किशन दास ने डॉ. मंगल सेन के विजयी रथ को रोक दिया. मगर अगली ही बार, 1977 में मंगल सेन फिर से जीत गये. वह 1977 से 1979 तक हरियाणा के उपमुख्यमंत्री रहे.
सन 1982 में कांग्रेस ने सेठ किशन दास पर दाव नहीं खेला और सतराम दास बत्रा को प्रत्याशी बनाया. यह बात सेठ जी को रास नहीं आई और अपने छोटे भाई हरिमोहन को आजाद उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में उतार दिया. जब नतीजे आये तो डॉ. मंगल सेन कांग्रेस प्रत्याशी को मात्र 380 वोटों से हरा कर एक बार फिर जीत गये. इस चुनाव में मंगलसेन को 19749, सत राम दास बत्रा को 19369 और बागी हरिमोहन को 15654 वोट मिले थे.

1985 के उपचुनाव में सेठ किशनदास एक बार फिर कांग्रेस की और से लडे और डॉ. साहब से हार का बदला लिया. लेकिन दो साल बाद ही साल ही, 1987 के विधानसभा चुनाव में डॉ. मंगल सेन ने फिर से अपना जलवा दिखाया और बाजी मार ली. साल 1990 में डॉ साहब का निधन होने के साथ ही रोहतक सीट से संघ/ बीजेपी की मानों चुनौती ही खत्म हो गई. उसके बाद साल 1991 से लेकर अब तक दो ही मौके ऐसे आये जब यहाँ से गैर कांग्रेसी दल के उमीदवार ( साल 1996 में सेठ श्रीकिशन दास हरियाणा विकास पार्टी से और साल 2014 में बीजेपी के मनीष ग्रोवर) जीते. इनके अलावा यहाँ से हर बार काग्रेस उम्मीदवार ही जीता. साल 1991 में सुभाष बत्रा, 2000 और 2005 में शादीलाल बत्रा, 2009 और 2019 में भारत भूषण बत्रा ने कांग्रेस की टिकट पर जीत दर्ज की है.

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