रोहतक। PGIMS रोहतक पर जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने करीब 1 लाख 30 हजार रूपये का जुर्माना लगाया है। पीजीआई पर यह जुर्माना इसलिए लगा क्योंकि कंज्यूमर कोर्ट ने डिलीवरी के समय एक महिला को हुए संक्रमण के लिए पीजीआईएमएस रोहतक को जिम्मेदार माना है। आयोग द्वारा की गई जांच में सामने आया कि वार्ड में तैनात महिला डॉक्टरों की कोई कमी नहीं थी।
महिला को सफाई व्यवस्था और सेवाओं में कमी की वजह से संक्रमण हुआ था। बाद में महिला का इलाज शहर के निजी अस्पताल में हुआ। ऐसे में आयोग के अध्यक्ष नागेंद्र कादियान ने पीजीआईएमएस के चिकित्सा अधीक्षक को इलाज पर खर्च हुए 68 हजार 263 रुपये 9 प्रतिशत ब्याज के साथ देने के आदेश दिए हैं। यही नहीं पीजीआई को 50 हजार रुपये का मुआवजा और 10 हजार रुपये कानूनी खर्च भी पीड़ित महिला को देना होगा।
मामले के अनुसार रोहतक की भरत कॉलोनी निवासी सरिता कौशिक को डिलीवरी के लिए 15 जुलाई 2017 को पीजीआई के वार्ड नंबर 2 की यूनिट नंबर 4 में डिलीवरी के लिए दाखिल कराया गया था। महिला की सामान्य डिलीवरी हुई, लेकिन पीजीआई में साफ सफाई और सुविधाओं की कमी की वजह से प्रसूता को गुप्तांग में संक्रमण हो गया। 18 जुलाई को महिला की पीजीआई से छुट्टी हो गई थी। लेकिन घर पहुंचने के बाद महिला की हालत थोड़ी खराब हो गई, जिसके बाद परिजनों ने महिला को नजदीक सनफ्लैग ग्लोबल अस्पताल में भर्ती करवाया।
वहां पर डॉक्टरों ने महिला को दवाई दी और 21 जुलाई को आने के लिए कहा। डॉक्टरों ने उसे 21 जुलाई को महिला की हालत को खराब पाया और उसे एडमिट कर लिया। महिला 29 जुलाई तक सनफ्लैग ग्लोबल में एडमिट रही। वहां से महिला को ठीक होने के बाद 15 जुलाई 2018 को छुट्टी हुई। इसके बाद महिला ने जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग शिकायत दर्ज करा दी। जिसमें उसने डिलीवरी के दौरान लापरवाही के लिए डॉक्टरों को जिम्मेदार ठहराया।
सरिता कौशिक ने अपनी कहा कि पीजीआईएमएस के यूनिट नंबर 4 की HOD डॉक्टर मीनाक्षी चौहान, PGIMS के चिकित्सा अधीक्षक और वार्ड नंबर 2 की महिला चिकित्सक डॉक्टर भोपाली दास को अपनी खराब हालत के लिए जिम्मेदार ठहराया। महिला का कहना था कि डिलीवरी के दौरान PGIMS में काफी लापरवाही बरती गई। HOD डॉक्टर मीनाक्षी चौहान ने खुद डिलीवरी कराने की बजाय, जिम्मेदारी PG स्टूडेंट्स को सौंप दी।
महिला ने आरोप लगाया डॉक्टर भोपाली दास ने भी अपनी ड्यूटी सही तरीके से नहीं की। सामान्य डिलीवरी के बावजूद काफी खून बहा और दर्द हुआ। अच्छे तरीके से टांके नहीं लगाए गए। महिला ने कहा कि 18 जुलाई तक उसका इलाज चला, लेकिन कोई आराम नहीं हुआ। उसकी हालत खराब थी लेकिन इसके बावजूद पीजीआई से उसे जबरन छुट्टी दे दी गई। इसी वजह से उसे निजी अस्पताल जाना पड़ा, जिस पर काफी पैसा लगा। PGIMS के डॉक्टरों की लापरवाही के चलते उसकी बच्ची को भी पीलिया हो गया। सरिता कौशिक ने 4 लाख रुपये मुआवजा और 50 हजार रुपये हर्जाने के तौर पर PGIMS से मांग की।
महिला की शिकायत पर उपभोक्ता आयोग ने PGIMS के चिकित्सा अधीक्षक और महिला डॉक्टरों को नोटिस जारी किए। अपने जवाब में PGIMS ने बताया कि सरिता कौशिक की डिलीवरी के लिए रेजीडेंट डॉक्टर्स को तैनात किया गया था। एचओडी डॉक्टर मीनाक्षी चौहान और डॉक्टर भोपाली दास की कोई गलती नहीं थी। लेबर रूम में तैनात महिला डॉक्टरों ने डिलीवरी कराई थी। डिलीवरी के बाद रक्तस्राव सामान्य है। महिला को PGI से जबरन छुट्टी नहीं दी गई। महिला और उसके परिजन PGI से घर जाना चाहते थे। परिजनों ने इस बारे में सहमति दी थी। नवजात बच्ची की देखरेख भी शिशु रोग विशेषज्ञ ने की थी और उसे भी बेहतर इलाज दिया गया था।
डॉक्टरों ने कहा कि डिलीवरी और उसके बाद महिला व उसके परिजनों ने किसी प्रकार की कोई शिकायत नहीं की थी। उपभोक्ता आयोग के सामने निजी अस्पताल की महिला चिकित्सक डॉक्टर आशीलू डागर के भी बयान दर्ज हुए। उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष नागेंद्र कादियान और सदस्य तृप्ति पानू व विजेंद्र सिंह ने ये निष्कर्ष निकाला कि इस मामले में PGI की महिला डॉक्टरों की तो कोई लापरवाही नहीं थी, लेकिन PGI में साफ सफाई और सुविधाओं की कमी की वजह से सरिता कौशिक को संक्रमण हुआ। टॉयलेट में भी सफाई नहीं पाई गई। ऐसे में PGI को निजी अस्पताल में खर्च हुई राशि 68 हजार 263 रुपये 9 प्रतिशत ब्याज और मुआवजा के तौर पर 50 हजार रुपये व कानूनी खर्च के तौर पर 10 हजार रुपये देने होंगे।