Saturday, April 20, 2024
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जानिए कब है चैत्र नवरात्रि, कलश स्थापना और पूजा शुभ-मुहूर्त

Chaitra Navratri 2023 :  साल में चार बार नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। जिनमें से दो नवरात्रि गुप्त होती हैं तो वहीं, 2 नवरात्रि महत्वपूर्ण माने जाती हैं। चैत्र नवरात्रि और शरद नवरात्रि धूमधाम से मनायी जाती है। जल्द ही चैत्र महीना शुरु होने वाला है। इस महीने में चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri 2023) मनायी जाती है।

जानिए कब है चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri 2023)

इस साल 22 मार्च 2023 से चैत्र नवरात्रि शुरू होगी और 30 मार्च 2023 को नवरात्रि की समाप्ति होगी। चैत्र माह की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 21 मार्च को रात 10 बजकर 52 मिनट से होगी। अगले दिन 22 मार्च 2023 को रात 8 बजकर 20 मिनट पर इस तिथि का समापन भी होगा। वहीं उदया तिथि के अनुसार नवरात्रि की शुरुआत 22 मार्च 2023 से होगी।

कलश स्थापना शुभ मुहूर्त

22 मार्च को प्रतिपदा तिथि सुबह 8 बजकर 20 मिनट तक ही है। ऐसे में 8 बजे से पहले ही घट स्थापना यानी कलश स्थापना हो जानी चाहिए। 22 मार्च को कलश स्थापना का मुहूर्त सुबह 06 बजकर 29 मिनट से सुबह 07 बजकर 39 मिनट तक है।

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नवरात्रि पूजा विधि 

  • चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन सुबह जल्दी स्नान करें।
  • स्वच्छ वस्त्र धारण करें और माता रानी का स्मरण करें।
  • मां दुर्गा (मां दुर्गा) का ध्यान करते हुए पूजा का संकल्प लें।
  • कलश स्थापित करने वाले स्थान को स्वच्छ करें और सजाएं।
  • एक चौकी लें और उसे गनगजल से शुद्ध करें।
  • चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं और अक्षत एवं पुष्पों उसपर रखें।
  • चौकी पर पानी से भरा हुआ कलश रखें।
  • कलश को कलावे से लपेटें और उसके ऊपर आम एवं अशोक के पत्ते रखें।
  • फिर नारियल को दूसरे लाल कपड़े से लपेट कर कलश पर स्थापित करें।
  • एक मिट्टी का बर्तन लें और उसमें जौ बोएं।
  • उस मिट्टी के बर्तन को कलश के ठेक सामने और माता रानी की प्रतिमा के पास रखें।
  • इसके बाद दीपक जलाएं और माता रानी की पूजा का शुभारंभ करें।
  • माता रानी का श्रृंगार करें और सोलह श्रृंगार की वस्तुएं भी अर्पित करें।
  • मात रानी को पुष्प चढ़ाएं और माला पहनाएं।
  • माता रानी के मंत्रों का जाप करें और दुर्गा सप्तशती स्तोत्र का पाठ करें।
  • इसके बाद क्षमता अनुसार हवन करें और माता रानी को घर आने का न्यौता दें।
  • माता रानी को भोग लगाएं और उनकी आरती गाएं।
  • आरती के बाद माता रानी का भोग प्रसाद रूप में खुद भी खाएं और प्रसाद बांटे भी।

 

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