10 हजार साल से भी अधिक पुराना है लौकी का इतिहास, जाने किस देश से भारत में पहुंची लौकी 

लौकी ऐसी सब्जी है जो मानव प्राचीन सभ्यता से है. इसे घीया नाम से भी जाना जाता है, जिसका जूस और सूप भी सेहत के लिए अति लाभकारी है

लौकी को आंतों की कमजोरी, कब्ज, पीलिया, बीपी, दिल में गड़बड़ी, शुगर, शरीर में जलन और मानसिक परेशानी में उपयोगी मानते हैं

भारत  समेत पूरी दुनिया मं लौकी की सब्जी खायी जाती है.खास बात तो यह है कि इसका उपयोग वाद्य यंत्रों को बनाने के लिए भी किया जाता है.

प्राचीन समय में लौकी से पानी की बोतल, चम्मच, पाइप, कलाकृतियां, कई बर्तन, कंटेनर आदि बनाए जाते थे. इसका उपयोग बर्डहाउस, फैंसी आभूषण, लैंप और संगीत वाद्ययंत्र के लिए भी किया जाता था. इसकी बेल के सफेद फूल और घने पत्ते घरों की सजावट में काम आते थे

भारत में सामाजिक समारोह व अन्य संस्कारों में लौकी, इसके फूल का प्रयोग किया जाता था. अफ्रीका में इसके बने गिलासों में चावल की बियर भरकर देवताओं को समर्पित किया जाता था

चीन में इसे दीर्घायु और सौभाग्य का प्रतीक माना गया. पुराने समय में नाइजीरिया में दुल्हन के दहेज के रूप में लौकी एक अनिवार्य हिस्सा रही है

लौकी की उत्पत्ति का इतिहास बहुत ही पुराना है. अमेरिका में हुए डीएनए शोध से पता चलता है कि हजारों साल पहले दुनिया के तीन स्थलों पर अलग-अलग इसकी उत्पत्ति हुई

मध्य अमेरिका में 10,000 वर्ष पूर्व, एशिया में भी लगभग इतने ही वर्ष पूर्व और अफ्रीका में लगभग 4,000 ईसा पूर्व. इसके अलावा पूरे पोलिनेशिया में करीब 1,000 ईस्वी में इसकी खेती शुरू हुई

एक रिसर्च में लौकी को अफ्रीका का मूल निवास बताया गया है. यह भी कहा जाता है कि जिम्बाब्वे में यह सबसे पहले खोजी गई. संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन ने यह दावा किया है कि लौकी की उत्पत्ति (खेती) लंबे समय से अफ्रीका में मानी जाती रही है

एक पक्ष का यह भी कहना है कि मेक्सिको की गुफाओं (ईसा पूर्व 7000 से 5500) व मिस्र के पुराने पिरामिडो (ईसा पूर्व 3500 से 3300 वर्ष) इसकी उपस्थिति इसके प्राचीनतम होने के प्रमाण हैं