भारतीयों ने शरबत पीना कैसे सीखा, कहां से हुई शरबत बनाने की शुरुआत
भारत में शरबत रीने की परंपरा बहुत पुरानी है चाहे बेल का शरबत हो या फिर नींबू का हम बड़े शौक से पीते हैं
हालांकि बाजार में बिकने वाले कोल्ड ड्रिंक्स आने के बाद शरबत की महत्ता थोड़ी कम हो गई है
भारत में अभी कुछ समय पहले तक मेहमान का स्वागत ठंडे शरबत के गिलास से होता था, स्कूल से लौटकर आए बच्चों की खोई ऊर्जा लौटाने के लिए उन्हें शरबत दिया जाता था
शरबत बनाने की कला भारत में कैसे पहुंची, ये जानना बड़ा दिलचस्प है, प्राचीन भारत में शरबत को पनाका कहा जाता था. ये फलों के रस से तैयार किए जाते थे. इनका जिक्र शास्त्रों, पुराणों और अन्य ग्रंथों में मिलता है
महारानी नूरजहां ने भारत में गुलाब शरबत का चलन शुरू किया था. गर्मी की एक शाम सम्राट जहाँगीर महारानी नूरजहां के साथ अपने गुलाबों के बाग में टहल रहे थे. गुलाबी और नारंगी आसमान की रंगत धीरे-धीरे फीकी पड़ती जा रही थी, गुलाबों की ख़ुशबू फिजां में थी
इस माहौल ने महारानी को फ़ारस में बने ख़ुशबूदार शरबत की याद दिला दी, जिसे उन्हें हर रोज़ फ़लूदा में मिलाकर दिया जाता था.गुलाब अपनी सुगंध बिखेर रहे थे, इससे महारानी के मन में विचार आया कि क्यों न इससे शरबत तैयार किया जाए
भारत में शरबत बनाने की ये शुरुआत थी. इससे पहले इन्हें चिकित्सा के रूप में मरीज़ को दिया जाता था. गुलाब शरबत भारत में अपनी तरह का पहला शरबत था और आज ये तक़रीबन हर घर का पेय है