Saturday, April 20, 2024
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9 साल की हीरा व्यापारी की बेटी बनी सन्यासी, सूरत में 35 हजार लोगों की मौजूदगी में ली दीक्षा

Surat: सूरत में 9 साल की हीरा व्यापरी की बेटी ने साध्वी बनने का फैसला लिया। 35 हजार लोगों की मौजूदगी में सूरत में हीरा व्यापारी की बेटी ने साध्वी की दीक्षा ली। हीरा व्यापारी संघवी मोहन भाई की पोती और धनेश-अमी बेन की 9 वर्षीय बेटी देवांशी का दीक्षा समारोह  वेसू में 14 जनवरी को शुरू हुआ था। आज सुबह 6 बजे देवांशी ने साध्वी की दीक्षा ली। 35 हजार से ज्यादा लोगों की मौजूदगी में देवांशी ने जैनाचार्य कीर्तियशसूरीश्वर महाराज से दीक्षा ली।

9 years girl monak: सूरत में 9 साल की हीरा व्यापरी की बेटी ने साध्वी बनने का फैसला लिया। 35 हजार लोगों की मौजूदगी में सूरत में हीरा व्यापारी की बेटी ने साध्वी की दीक्षा ली। हीरा व्यापारी संघवी मोहन भाई की पोती और धनेश-अमी बेन की 9 वर्षीय बेटी देवांशी का दीक्षा समारोह  वेसू में 14 जनवरी को शुरू हुआ था। आज सुबह 6 बजे देवांशी ने साध्वी की दीक्षा ली। 35 हजार से ज्यादा लोगों की मौजूदगी में देवांशी ने जैनाचार्य कीर्तियशसूरीश्वर महाराज से दीक्षा ली।

सूरत के हीरा व्यापारी संघवी मोहन भाई की बेटी देवांशी पांच भाषाओं की जानकार हैं। बता दें कि देवांशी के परिवार के स्व. ताराचंद का भी धर्म के क्षेत्र में एक बहुत अहम स्थान था। उन्होंने श्री सम्मेदशिखर का भव्य संघ निकाला और आबू की पहाड़ियों के नीचे संघवी भेरूतारक तीर्थ का निर्माण करवाया था। हीरा व्यापारी संघवी मोहन की दो बेटियां हैं जिनमें देवांशी उनकी बड़ी बेटी है। देवांशी ने 367 दीक्षा समारोहों में भाग लिया और उसके बाद ही उन्होंने सांसारिक जीवन से संन्यास लेने के लिए प्रेरित हुईं हैं। परिवार के एक करीबी दोस्त ने कहा कि उसने आज तक कभी टीवी या कोई फिल्म नहीं देखी है। इतना ही नहीं वह कभी किसी रेस्टोरेंट में भी नहीं गई है।

सूरत में ही देवांशी की वर्षीदान यात्रा निकाली गई थी। इसमें 4 हाथी, 20 घोड़े, 11 ऊंट थे। इससे पहले मुंबई और एंट्वर्प में भी देवांशी की वर्षीदान यात्रा निकली थी। देवांशी संगीत, स्केटिंग, मेंटल मैथ्स और भरतनाट्यम में एक्सपर्ट है। देवांशी को वैराग्य शतक और तत्वार्थ के अध्याय जैसे महाग्रंथ कंठस्थ हैं।

बताया जाता है कि देवांशी ने 8 साल की उम्र तक 357 दीक्षा दर्शन, 500 किमी पैदल विहार, तीर्थों की यात्रा व कई जैन ग्रन्थों का वाचन कर तत्व ज्ञान को समझा। उन्होंने कभी टीवी देखा नहीं, जैन धर्म में प्रतिबंधित चीजों को कभी इस्तेमाल नहीं किया। न ही कभी भी अक्षर लिखे हुए कपड़े पहने।

 

 

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